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________________ ४७६ ] | आचार्य अमृतचन्द्र व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व के निमित्त कार्य के यथार्थतः कर्ता नियामक नहीं होते । समुद्र में उत्पन्न तरंगावस्था में हवा का चलना निमित्त है तथा निष्त रंगावस्था में हवा का न चलना निमित्त है। हवा का चलना यह सक्रिय प्रेरक निमित्त है, और हवा का न चलना यह उदासीन निमित्त है; तथापि हवा का समुद्र के साथ व्याप्यव्यापक भाव का प्रभाव होने से उनमें कर्ता - कर्मपने की प्रसिद्धि है । समुद्र स्वयं ही तरंगावस्था में अन्तयपिक होकर उत्तरंग तथा निस्तरंग अवस्थाओं को स्वयं ही कर्ता है |" अपने कार्य का कर्ता समुद्र, पर का कार्य नहीं करता है, अतः सिद्ध है कि प्रेरक प्रादि समस्त निमित्त कार्य के नियामक नहीं है । निमिश को अपेक्षा उपादान से सम्पन्न कार्य को नैमित्तिक कहते हैं 1 निमित्त की अपेक्षा उपादान को ही नैमित्तिक कहते हैं । निमित्त उपादान को दूसरे शब्दों में निमित्तनैमित्तिक नाम से भी व्यवहृत किया जाता है। निमित्तनैमितिक सम्बन्ध में भी निमित्तनैमित्तिक का कर्ता नहीं होता, क्योंकि व्याप्य व्यापक भाव के बिना कर्ता-कर्म संबंध घटित नहीं होता । निमित्त नैमिनिक में प्रव्यापक है अतः निमित्त नैमितिक भाव का कर्ता नहीं है । उन दोनों में निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध मात्र घटित होता है। निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध में भी दोनों अपने अपने परिणाम के कर्ता होते हैं, कोई किती के परिणाम के कर्ता नहीं, क्योंकि अपन भाव से अपना भाव किया जाता है. अपने भाव से परभाव कदापि नहीं किया जा सकता । जैसे मिट्टी अपने भावरूप घट को करती है परन्तु परभाव रूप पट (वस्त्र को नहीं करती। उसी प्रकार जीव, जीवभाव को करता है। जीव पुद्गलकर्म भाव का कर्ता नहीं है, किन्तु निमित्तमात्र है। इसी प्रकार पुद्गलकर्मोदय जीवभाव का कर्ता नहीं है, निमित्तमात्र है, अतः निमित्तनैमित्तिक अपने अपने भाव के कर्ता है, परभाव के कर्ता नहीं। उनमें परस्पर में समकाल कार्यपना तथा अनुकुलता देखकर ही निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध माना गया है। दुसरे शब्दों में निमित्त को नैमिलिक का अकर्ता कहा गया है। वास्तव में निमित्तमिलिक अथवा निमित्त उपादान सम्बन्ध दो द्रव्यों में होता है, जबकि कर्ता कर्म सम्बन्ध एक ही द्रव्य में होता है । आचार्य अमृतचन्द्र के उक्त दार्शनिक विचारों की प्रमाणता प्राचार्यश्रेष्ठ श्राचार्य कुन्दकुन्द के वचनों ५. समयसार ३ की टीका । समयसार गा८र की टीका N
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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