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का प्रकाशन का भार तथा उक्त राशि समर्पित कर दी गयी । परिणामस्वरूप प्रस्तुत कृति आपके हाथों में है। इस ग्रन्थ के प्रकाशन में सहयोग देने वालों को नामावली ग्रन्थान्त में सधन्यवाद प्रकाशित की जा रही है ।
शोध-प्रबन्धों के प्रकाशन की श्रृंखला में यह हमारा नृतीय प्रकाशन है। सबसे पहले हमने डॉ, भारिल्ल द्वारा लिखित एवं इन्दौर विश्वविद्यालय से पीएच. डी. की उपाधि के लिए स्वीकृत 'पण्डित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व" नामक शोध-प्रबन्ध्र का प्रकाशन किया था । दूसरा - डॉ. शुद्धात्मप्रभा द्वारा लिखित एवं राजस्थान विश्वविद्यालय से पीएच. डी. उपाधि के लिए स्वीकृत "प्राचार्य कुन्दकुन्द
और उनके टीकाकार" का प्रकाशन किया था और यह तीसस प्रकाशन है। इनके अतिरिक्त हमने दो लधु शोध-प्रबन्ध भी प्रकाशित किये हैं। राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा एम. ए. की परीक्षा के नवम प्रश्न-पत्र के लिए स्वीकृत शुद्धात्मप्रभा द्वारा लिखित "प्राचार्य अमृतचन्द्र और उस पुरुषार्थ सदुयाय" या अध्यात्मप्रभा द्वारा लिखित 'कविवर बनारसीदास : व्यक्तित्व और कर्तृत्व" ।।
इसके शीघ्र प्रकाशन हेतु अनेक प्रयास करते रहने पर भी अनुमान से भी अधिक समय लग गया है। साथ ही प्रकाशन में जितनी शुद्धता एवं सुन्दरता आनी चाहिए थी, वह भी नहीं आ सकी । तदर्थ क्षमा प्रार्थी हैं।
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के लेखन हेतु डॉ. उत्तमचन्दजी धन्यवाद के पात्र हैं। डॉ हुकमचन्दजी भारिल्ल ने इसकी सुन्दर एवं विस्तृत प्रस्तावना लिखी है; अतः उनके भी हम हार्दिक अाभारी हैं। इसके प्रूफसंशोधन में पण्डित अभयकुमारजी जैन दर्शनाचार्य एव प्रकाशन व्यवस्था में अखिल बंसल का सराहनीय सहयोग रहा है, अतः हम उक्त दोनों महानुभावों के भी आभारी हैं । मुद्रण व्यवस्था हेतु कपूर पार्ट प्रिन्टर्स वाले भी धन्यवाद के पात्र हैं।
परमोपकारी पूज्य श्री कानजी स्वामी के उपकार को तो क्षणमात्र भी विस्मृत नहीं किया जा सकता है। उन्हीं के सदुपदेश एवं सत्प्रेरणा से डॉ. हुकमचन्दजी एवं डॉ उत्तमचन्दजी जैसे उच्चकोटि के विद्वान उनके द्वारा प्रसारित वीतराग मार्ग के प्रचार एवं प्रसार में संलग्न हैं। १ जनवरी, १६८८ ई०
नेमीचन्द पाटनी महामंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट
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