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________________ कृतियां । [ ६४७ m में दार्शनिकता, सैद्धान्तिकता, आध्यात्मिकता तथा काव्य रसिकता की धाराएँ कोक होकर तांगित एवं समाहित हुई है । महक वित्व का उत्कृष्ट रूप भी उक्त कृति में अभिव्यक्त पाते हैं। प्रणाली: समयसार कलश में माद्यन्त तत्त्व निरूपण प्रणाली का अनुसरण हुआ है । नयात्मना तथा स्थाद्वादात्मक ऋथनशैली द्वारा अनेकांतात्मक ज्ञानस्वरूप प्रात्मा के शुद्ध स्वरूप का निरूपण अथवा समयसार के दर्शन कराना ही अध्यात्म निरूपण का चरम ध्येय है, उसी ध्येय की प्राप्ति का प्रयास समग्र अन्य में सुष्ठुरूपेण हुआ है । ग्रन्थ वैशिष्ट्य : "समयसार कलश" कृति में अनक विशेषाताएं है। उनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं - १. छंद विद्या का वैज्ञानिक प्रयोग अप्रतिम है। २. भाषा का अर्थ गाम्भीर्य, माधुर्य तथा रसातिरेक असाधारण है। ३. भावों के उत्कर्ष-अपकर्ष की अनुगामिनी भाषा तरंगिणी की भौति तरंगित हो उठी है। ४. अध्यात्म का अमृत समस्त कलशों में से छलक उठा है। प्रौद्ध दार्शनिकता, उच्चकोटि को परिमार्जिन भाषा, महाकबि को प्रतिभा इन्यादि वैशिष्ट्यों से उक्त कृति समलंकृत है। ६. इसके रसिक पाठक व अध्पेता इसके प्रत्येक गुणों पर मोहित हो उठते हैं । मनम यूर आत्मानुभव के परमानंद में मस्त होकर नाच उठता है। समसार कलश से अनुप्राणित टीकाएं एवं टीकाकार १. ई. ९१५ -१६५, टोकानाम - समयसारकलश, टोकाकार - आ. अमृतचन्द्र, भाषा - संस्कृत पद्य, जानकारी स्रोत – उपलब्ध । ई. १५१६ दी, ना. - परमाध्यात्मतरंगिणी, टी. - भट्टारक शुभचन्द्र, भाषा - संस्कृतगद्य, जा. सो - उपलब्ध । ३. ई. १५८४, टी, ना. - समयसारकलशटीका, टी. - पाण्डे राजमल, भाषा - ढ़हारी, हिन्दोगद्य, जा. स्रो- उपलब्ध । ४. ई. १६३६, दी. ना. - नाटक समयसार, टी. - पं. बनारसीदास. भाषा - हिन्दीपद्य, जा, स्त्री- उपलब्ध । - me - -
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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