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________________ ३२४ । | आचार्य अमृतचन्द्र : क्तित्व एवं कर्तृत्व इत्यादि पद्य दिया है तथा पद्य के पश्चात् " इति पञ्चास्तिकाय संग्रहाभिधानस्य समयस्य व्याख्या समाप्ता" इन शब्दों के साथ टीका समाप्त होती है । यद्यपि सामान्यतः चारों प्रतियों में मूलपाठ के मुद्रण में कोई प्रकार की त्रुटि नहीं आई है । तथापि तृतीय प्रति में श्रुतस्कंधवर्णन समाप्ति के पश्चात् अंतिम पद्य तथा टीका समाप्ति की सूचना अधिक उचित प्रतीत होती है । परम्परा : समयव्याख्या टीका में भी सिद्धांत विषयक गंभीर निरूपण हुआ है । दार्शनिक तथ्यों का तार्किक स्पष्टीकरण तथा षड्द्रव्य, पंचास्तिकाय एवं सात तत्वों के स्वरूप का निदर्शन भी इस कृति में पाया जाता है । द्रव्यानुयोगपरक न्यायशैली में निरूपण की पूर्वाचार्योक्त परम्परा का इस टीका में प्रान्त निर्वाह हुआ है । यह टीका श्राचार्य कुन्दकुन्द की दार्शनिक मान्यताओं का विवीम् एवं सष्टीकरण करने में पूर्णक सफल सिद्ध हुई है। साथ ही सर्वत्र नयात्मक निरूपण द्वारा शास्त्रतात्पर्य एवं सूत्रतात्पर्य दोनों अभिव्यक्त हुए हैं। इसप्रकार इस टीका द्वारा कुन्दकुन्दाचार्य की दार्शनिक सैद्धान्तिक परम्परा भलीप्रकार पुष्ट हुई है । प्रणाली : समयव्याख्या टीका में आ. अमृतचन्द्र ने सर्वत्र न्यायशैली तथा नयात्मक निरूपण शैली को अपनाया है । नयों का यथोचित सामञ्जस्य तथा नयाभास का पर्दाफाश एक साथ हुआ है । प्रौढ़तम अर्थप्रगल्भा भाया, श्रेष्ठ साहित्यिक शैलियों की योजना तथा सम्यग्ज्ञान ज्योति को जागृत करनेवाली पदयोजना का प्रयोग अपने आप में अनूठा है । ग्रन्थशिष्ट्य इस कृति की कुछ विशेषताएं इसप्रकार हैं। इसमें १. विभिन्न साहित्यिक बालियों के प्रयोग पाये जाते हैं । स्याद्वाद तथा अनेकांत का यथोचित दिग्दर्शन कराया गया है | पद्रव्य, पंचास्तिकाय के निरूपण में परमत की मान्यताओं का तथा सप्ततत्त्व निरूपण में तयाभासियों की मान्यताओं का निराकरण पाया जाता है । प्रौढ़, परिष्कृत, चमत्कारोयादव भाषा, गंभीर, उदार, हितकारक भावों का सम्मिलन सर्वत्र दर्शनीय है । ३. ४.
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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