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________________ कृतियाँ । । ३१५ उक्त अधिकार को समाप्त करने हुए लिखा है कि समस्त द्रव्य (जीव व पुद्गल) अपने ही परिणाम से गति तथा अपने ही परिणाम से स्थिति करते हैं। धर्म अधर्म, गतिस्थिति के धुण्य हेतु नहीं हैं. मात्र उदासीन हेतु हैं । पंचम अधिकार में प्राकाश दयास्तिकाय का वर्णन है। समस्तु . द्रव्यों के लिए अवकाशदान में निमित्तहंतु अाकाश है. 1. यह लोक मर्यादा से... बाहर प्रयोक में भी अमर्यादित रूप से है । जो आकाश को गति का हेतु मानते हैं. उनकी मान्यता का खंडन करते हुए लिखा है कि यदि आकाश को . गतिहेतु माना जावे तो अलोक की हानि तथा लोवा की वृद्धि का प्रसंग पाता है । साथ ही सिद्ध जीवों की स्थिति लोकांत में ही होती है, इससे भी सिद्ध है कि प्रकाश में गतिहेतुपना नहीं है। इसप्रकार पुनः पूर्वोक्ताः सिद्धांत को दुहराते हुए अधिकार समाप्त किया है ।२. षष्ठ अधिकार को तूलिका नाम दिया है। इसमें द्रव्यों को मुर्तर अमूर्त दो भेदों में विभाजित करते हुए स्पर्श-रस-गंध-वर्ण के सद्भाववाले । द्रव्यों को मूर्त तथा उनके अभाववाले द्रव्यों को अमूर्त कहा है। वहां पुद्गल द्रव्य मूर्त तथा शेष पाँच जीव-धर्म-अधर्म-पाकास तथा काल अमूर्त::: हैं। आगे द्रव्यों में सक्रिय व निष्क्रियप का भेद किया है। प्रदेशांतर प्राप्ति के कारणरूप परिस्पंदन को क्रिया कहा है । पुद्गल तथा जीव दो.., द्रव्य सक्रिय तथा शेष चार द्रव्य निष्क्रिय हैं । पुनः इंद्रियग्राह्य को मूर्त तथा । उसके विपरीत को अमूर्त कहा है । इस तरह पूलिका समाप्त हुई। सप्तम अधिकार है कालद्रव्याधिकार । इसमें काल के निश्चयव्यवहार दो भेद किये । यहाँ समय नामक ऋमिका पर्याय को व्यवहारकाल । तथा उसके अाधारभूत द्रव्य को निश्चय काल कहा है । काल के लिए नित्य :- ... तथा क्षणिक दो विभागों द्वारा समझाया है । निश्चय काल को द्रव्यरूपः । तथा व्यवहारकाल को पर्यायरूप कहा है। कालादि छहों पदार्थ द्रव्यसंशा को धारण करते हैं, परन्तु कालद्रव्य अस्तिकाय संज्ञा धारण नहीं करता । .. इस तरह निरूपण करके काल द्रव्य का कथन समाप्त किया ।' तत्पश्चात : प्रथमश्रुतस्कंध का उपसंहार कर, के लिए. १०३ तथा १०४ अंतिम दो.. १. समयव्याख्या, गा. ८६ से २६ तक । 2. वही, गा.६० से १६ तक | ३. वही, गा. ६७ से ६ सबः । ४. वही, गा. १०० स १०२ राफ ।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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