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। प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व १४. ग्रं.-प्रवचनसार, टीकाद्वय टी. - पं. अजित कु. ब. रतनचन्द्र, प्र -
महावीरजी, ई. १६६६, भाषा - हिन्दी। १५. ग्रं. - श्री प्रवचनसार परमागम, टी, .. पं. वृदावन, प्र. - अ. दु. . !
ग्र. मा. सोनगढ़, ई. १६७४, भाषा - हिन्दी पद्य । १६. ग्रं - प्रवचनसार टीका -. टी. - अमृतचन्द्र, जयसेन, प्र. - वी. स. प्र. ट्र, भावनगर ई. १९७५, भाषा - हिन्दी ।
समय व्याख्या परिचय :
टीकात्रों के अन्त त्रादा तद्र जी तृतीय कृति "T. व्याख्या" नामक संस्कृत गद्य टीका है । यह टीका भी कुन्वन्दाचार्य की प्राकृत रचना पंचत्थि काय पंचास्तिकाय) पर प्रौढ़, दार्शनिक-सैद्धान्तिका, मार्मिक टीका है। इसका अपरनाम तम्बप्रदीपिका नाम भी उपलब्ध हुआ है, जिसका उल्लेख हम पहले कर चुके हैं। उक्त ग्रन्थ पंचस्थिकाय द्वितीय श्रतस्कंध के सर्वोकृष्ट मागम में परिगणित है। इसके कर्ता अलौकिक महापुरुष हैं: तो इसके टीकाकार भी तदनुरूप महासमर्थं आचार्य हैं। अमृतचन्द्र की टोकाएँ देवीय तथा श्रुतकेवली के वचन समान महत्त्वपूर्ण हैं। प्रस्तुत टीका में टोकाकार ने कुशलतम संस्कृत नद्यकाव्य-शिल्पी के रूप में सुन्दर शैलियों तथा प्रोर गद्यभाषा में जैनदर्शन एवं न्याय को प्रदर्शित किया है । इस टीका की रचना का उद्देश्य टोकाकार द्वारा स्पष्ट घोषित किया गया है कि यह सम्य ज्ञान ज्योति को जागृत करनेवाली, द्विनयाथित समय ध्याख्या नामक टोका संक्षेप में कही जाती है । यह टीका तत्त्वों का परिज्ञान कराने वाली तथा प्रयात्मक सम्यग्दर्शन-ज्ञाताचारित्ररूप) मार्ग द्वारा कल्याण स्वम्प मोक्ष प्राप्ति का कारण है । ' इस टीका में द्रव्य, पंचास्तिकाय का सविस्तार, सतर्क, सुस्पष्ट प्रतिपादन है । साथ ही नव पदार्थों का विशेषकर मोक्षमार्ग का परम प्राध्यात्मिक विवेचन हैं। टोकाकार के अमाधारण व्यक्तित्व के कारण यह टीका उच्चकोटि के गद्यकाव्य की विभपतानों से चमत्वात हं । सिद्धांत तथा अध्यात्म दोनों के रसिकजनों को यह टोका परमप्रिय है । प्राचार्य अमृतचन्द्र की इस समय व्याख्या टोका के - ..... .५. नर व्यापा, पगलानरः! माना ।