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कृतियाँ 1
प्रणाली -
आत्मख्याति टीका में प्राचार्य प्रमृतचन्द्र ने अनोखी प्रस्ति नास्ति निरूपण परत अनेकान्तात्मक शैली का प्रयोग किया है। विभिन्न नयों के निरूपण विषयक विरोध का विनाश करने के लिए स्यात् पद मुद्रित "स्याद्वादकथनशैली" को ग्राद्यन्त अपनाया है । उक्त स्थाद्वादमयी निरूपण शैली ही मोह का मन कराने तथा परमज्योति स्वरूप शुद्धात्मा को प्राप्त करने में समर्थ है। घने में उन्नागम, युक्ति, गुरु-परम्परा तथा स्वानुभव को अवश्य गर्भित किया है। ग्रन्थ वैशिष्ट्य
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उक्त ग्रन्थ के कुछ वैशिष्ट्य इस प्रकार हैं
१. समग्र टीका नाटकीय शैली में रची हुई है ।
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२. उच्चकोटि की प्रौढ़ साहित्यिक तथा गम्भीर अर्थवाही भाषा का प्रयोग हुआ है।
३. गद्यपद्य मयी चम्पू शैली का प्रयोग भी अध्यात्मनिरूपण में प्रथम बार हुआ है।
४. अन्य मतों का दार्शनिक, तार्किक एवं न्यायशैली में निराकरण हुआ है। ५. सैद्धांतिक तथा दार्शनिक विवेचना भी प्रचुर मात्रा में हुई है ।
६. सर्वत्र आत्मानुभूति तथा अध्यात्म की अनुपम छटा विकीर्ण हुई है । श्रात्मख्याति टीका तथा उससे अनुप्राणित टीकाएं व टीकाकार १. ईस्वी सन् ६१५-६६५, टीकानाम- आत्मख्याति, टीकाकार नाम - आचार्य अमृतचन्द्र, भाषा संस्कृत जानकारी स्रोत मुद्रित ग्रन्थ
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उपलब्ध
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२. ईस्वी सन् ६८०-१०६५, टीकानाम समयसारवृत्ति, टीकाकारनाम- श्राचार्य प्रभाचंद्र, भाषा संस्कृत जानकारी स्रोत - जे.सा.वृ. इति. ४/१५३
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टीकाकार
३. ईस्वी सन् १०४३-१०७३, टीकानाम भाषा टीका, नाम आचार्य मल्लिषेण प्रथम, भाषा - तमिल, जानकारी स्रोत
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समयसार (चक्रवर्ती) प्र. पृष्ठ १
४. ईस्त्री सन् १२-१३वीं शती, टीकानाम - भाषा टोका, टोकाकारनाम बालचन्द्र देव, भाषा कन्नड़, जानकारी स्रोत- भा.सं. में
जे. यो. पृष्ठ ८५ ।
१. समयसार कलश, ४