________________
व्यक्तित्व तथा प्रभाव ।
[ १६५
बस करो- छोड़ो। यह एक मात्र परमार्थ-परमतत्त्व (आत्मा) है, उसका ही सदा अनुभव करो, क्योंकि वही सर्वश्रेष्ठ है। अपने चतन्यरस के विस्तार से परिपूर्ण ज्ञान द्वारा बिस्फुरित मुविशुद्ध परमात्मतत्त्व से श्रेष्ठ उत्कृष्ट - सारभूत किचित् कोई पदार्थ नहीं है । ' शुद्धात्मस्वरूप के प्रदर्शक समयमार शास्त्र की टीका को वे सम्पूर्ण जगत् का प्रसाशक (देखने वाला) एक मात्र चक्षु निरूपति करते हैं, क्योंकि वह विज्ञानघनस्वरूप, आनन्द से परिपूर्ण, अक्षय आत्मा की प्रत्यक्ष दिखाता हा पूर्णता को प्राप्त होता है । इस ग्रन्थ में इस आत्मतत्व का प्रतिपादन हुना तथा आत्मा को ज्ञानमात्र सिद्ध किया गया। वह आत्मा अखंडित, एकरूप, निराबाघ तथा स्वयं द्वारा अनभव वारने योग्य है ।
अमृतचन्द्र की अध्यात्म रसिकता प्रत्येक कृति में प्रस्फुटित हई है। प्रवचनसार की टीका के प्रारम्भ में भी उद्घोषणा करते हैं कि परमानंद रूप सुधारस के पिपासु भग्यजनों के हित के लिए तत्त्वप्रदीपिका नामक टीका रची जा रही है, जिसमें अध्यात्मतत्त्व का स्पष्ट रूपेण प्रकटीकरण किया जा रहा है। यद्यपि अमृतचन्द्रकृत मभी मौलिक अथवा टीकाकृतियों में उनकी अध्यात्म रसिकता का रस भरा है, तथापि समयसार की आत्मन्याति टीका में अमृतचन्द्र की अध्यात्मरसिकता का रससमुद्र सर्वत्र लहराता प्रतीत होता है तथा वे उसमें कभी तैरते, कभी कोडा करते तो कभी हुबकी लगाते दिखाई देते हैं। प्रात्मख्याति टीका की रचना अध्यात्म की मस्ती के समय की गई है, इसलिए उसमें आगत गद्यपद्य, छन्द, रस, अलंकार तथा माधुर्यादिगुण सभी अध्यात्म रस से पगे एवं अध्यात्मरस' के उत्कर्षाधायक हैं। इस सभी की सविस्तार चर्चा
१. अलमल पतिजल्य विकल्परतल्परमिह परमार्थश्चेत्यतां नित्यमेकः । ____ मदरसविरारपूर्णज्ञानविस्फूतिमावान खलु समयसारादुतरं किंचिदस्ति ।। २४४ ।।
- समयसार कलश २. इदमेक जगच्चक्षुरक्षयं याति पूर्णताम् ।
विज्ञानघनमानन्दमयमध्यक्षतां नयत् ।। २४५ ।। समयसार कलश ३. इतीदमात्मनस्तत्त्वं ज्ञानमात्रमनस्थितम् ।
प्रखंडमेकमचलं स्वसंवेद्यमबाधितम् ।। २४६ ।। समयसार कलश ४. परमानन्दसुधारस पिपामितानां हिताय भध्यानाम् ।
क्रियते प्रकटिततत्त्वा प्रवधनसारस्य वृत्तिरिमम् ।। ३ ।। प्रवचनसार टीका