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[ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व तथा कर्तृत्व
गम्भीर दार्शनिकता के साथ ही अमृतचन्द्र के प्रीतम गद्य, सामासिक सालंकृत शैली एवं विद्वत्ता की स्पष्ट झलक मिलती है जो उन्हें उच्चकोटि काव्यागाकार सित करती है।
सुगम व्याख्या शैली - ज्ञान को मोक्ष का कारण सिद्ध करते हुए सुगम व्याख्याशैली में वे लिखते हैं- "ज्ञानं हि मोक्ष हेतुः ज्ञानस्य शुभाशुभकर्मणोरबंधहेतुत्वे सति मोक्षहेतुत्वस्य तथोपपत्तेः । तत्तु सकलकमी दिजात्यंतर विविक्तचिज्जातिमात्रः परमार्थ आत्मेति यावत् । स तु युगपदेकीभावप्रवृत्तज्ञानगमनमयतया समत्रः सकलनयपक्षासंकीर्णे कज्ञानतया शुद्धः, केवल चिन्म वन्मात्रवस्तुतया केवली, मननमात्र भावतया मुनिः स्वयमेव ज्ञानतथा ज्ञानी, स्वस्य भवनमात्रतया स्वभाव:, स्वतश्चितो भवनमात्रतया सद्भावो वेति शब्दभेदेऽपि न च वस्तु भेद: ।" इसी शैली में अन्यत्र "जीवों को वास्तविक मोक्ष का कारण ज्ञान है" यह बतलाते हुए वे लिखते हैं
" मोक्षहेतुः किल सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि । तत्र सम्यग्दर्शनं तु जीवादि श्रद्धानस्वभावेन ज्ञानस्य भवनम् । जीवादिज्ञानस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं ज्ञानम्। रामादिपरिहरणस्वाभावेन ज्ञानस्य भवनं चारित्रम् । तदेवं सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्राण्येक मेव ज्ञानस्य भवनमायातम् । ततो ज्ञानमेव परमार्थ मोक्षहेतुः २ इसी तरह सरलतम, सुगमतम तथा
१. समयसार गाथा १५१ टीका, अर्थ:- ज्ञान मोक्ष का कारण है क्योंकि वह शुभाशुभ कर्मो के बन्ध का कारण न होने से उसके इस प्रकार मोक्ष का कारणपना बनता है । वह ज्ञान समस्त कर्म आदि जातियों से भिन्न चैतन्य जातिमात्र परमार्थ (परमपदार्थ ) है - आत्मा है । वह (आत्मा) एक ही 'माय एक रूप से प्रवर्तमान ज्ञान और गमन स्वरूप होने से समय है, समस्त नयपक्षों से श्रमिश्रित एक ज्ञानस्वरूप होने ते शुद्ध हैं, केवलचिन्मात्र वस्तुस्वरूप होने से केवली है, केवल मनन मात्र ( ज्ञानमात्र) भावस्वरूप होने से मुनि है, स्वयं ही ज्ञानस्वरूप होने से ज्ञानी है. स्व का भवनमात्र स्वरूप होने से स्वभाव है। श्रथवा स्वतः चैतन्य का भवनमात्रस्वरूप होने से सद्भाव है, इस प्रकार शब्दभेद होने पर भी वस्तुभेद नहीं है ।
२. वहीं, गाथा १५५ की टीका, अर्थ:-मोक्ष का कारण वास्तव में सम्यक्दर्शनज्ञानचारित्र है। वहां सम्यग्दर्शन तो जीवादि पदार्थों के श्रद्धानस्वभाव रूप ज्ञान का होना [ परिणमन करना) है, जीवादि पदार्थों के ज्ञानस्वभावरूप ज्ञान का होना ज्ञान है, रागादि के त्याग स्वभाव रूप ज्ञान का होना सो चारित्र है | अतः इस प्रकार सम्यक्दर्शनशानचारित्र तीनों एक शान का ही भवन (परिणमन) है, इसलिए ज्ञान ही परमार्थं ( वास्तविक ) मोक्ष का कारण है ।