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________________ परामर्श का पूरा-पूरा प्रयोग इस शोध प्रबन्ध में हुअा है। मैं उनके प्रति कृतज्ञ एवं श्रद्धावनत हूँ। - शोध कार्य में सम्बन्धित मन्यवान् परामर्शदाताओं में प्रादरणीय पं. बंशीधर जी शास्त्री तथा श्रीमान् डॉ कस्तूरचन्द जी कासलीवाल जयपुर का भी ग्राभागे हैं । परमादरणीय श्रीमान ब. माणिकचन्द जी चवरे कारंजा अकोला) ने गोधोपयोगी सामग्री - ग्रंथादि जूटाने तथा निरंतर प्रेरणा प्रदान कर में कोई कसर नहीं की। तदर्थ मैं उनका अत्यविक ऋणी एवं आभारी हं । प्रेरणादायकों में अग्रणी श्रीमान् प्रो जमनालाल जी जैन इन्दौर है, जिनका अग्रजतुल्य सक्रिय योगदान इस कार्य का मूल प्रेरणास्रोत रहा है । उनके प्रति मैं अति कृतज्ञ हूं ! अन मालिकों एक गहलोनियों में सर्वश्री डॉ दरबारीलाल जी कोठिया बनारस, पं. प्रकाशचन्द जी हितैषी दिल्ली, पं. माणिकचन्द जी भिसीकर, बाहुबलि कुम्भोज, ब्र. यशपाल जी एलोरा, शांति कमार जी ठवली देवलगांव राजा, पं देवेन्द्र जैन, नीमच, पं. ज्ञानचन्द जी जन जबलपुर, न. मचन्द्र जी जैन भोपाल, मास्टर मनोहर लाल जी अजमेर, श्री भगतराम जी दिल्ली, श्री विमलचंद शाह सोलापुर. श्री फूलचन्द जी विमलचन्द जी झांझरी · उज्जैन, श्री विमलचन्द डोसी इन्दौर, श्री मांगीलाल जी पहाडिया इन्दौर, प्रोफेसर पद्मनाभ जैनी वर्कले विश्वद्यालय, यू. एस. ए. आदि प्रमुख हैं। श्री कुन्दकुन्द कहान तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट - वम्बई ने मुझे भाग्डारकर प्राच्यविद्या शोध संस्थान पना का आजीवन सदस्य बनाकर उक्त संस्था के विशालकाय ग्रंथालय का परिपूर्ण लाभ दिलाया। श्री महावीर ट्रस्ट मध्यप्रदेश, इन्दौर ने मुझे गोध छात्रवृत्ति स्वीकृत कर सर्व प्रकार शोध कार्य में सहयोग प्रदान किया । श्रीमान् शिख चन्द जी मोनी तथा मुमुक्षु मण्डल जमेर ने शोक कार्य के टंकण की व्यवस्था कराई, टंकणकर्ता भ्रातादृय श्री पवन कमार एबं श्री सुशील कमार जैन ने मनोयोगपूर्वक लगातार शोध प्रबन्ध के टंकण में नत्परता दिखाई। उक्त सभी व्यक्तियों संस्थानों एवं टम्टीजनों के प्रति भी मैं आभारी है। दोन प्रवन्ध की प्रस्तावना लिखने हेतु मैंन आदरणीय पं. डॉ. हुकमचन्द जी भारिल, जयपुर से निवेदन किया, जिसे उन्होंन सहज भात्र से स्वीकार कर. बहमन्य प्रस्तावना लिखकर मुझे अत्यन्त उपकृत किया, तदर्थ हम उनके ऋणी व प्राभारी हैं। अनुजवत भाई श्रीमान् पं. अभयकुमार जी शास्त्री जयपर ने शोध प्रबन्ध के प्रकाशन का यथा-संभव भार उठाया, तदर्थ वे भी धन्यवाद के पात्र हैं।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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