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________________ व्यक्तित्व र अभाव ] [ ११३ "यस्थ रागादीनामाज्ञनमयानां भावांनांलेशस्यापि सद्भावोऽस्ति स तब लिकल्पोऽपि ज्ञानमयस्य भावस्याभावादात्मानं न जानाति । यस्त्वात्मानं न जानाति सांडनात्मानमपि न जानाति स्वरूपपररूप सत्तासत्ताभ्यामेकस्य वस्तुतो निश्चीयमानत्वात् ततो य आत्मानात्मानौ न जानाति स जीवाजीव न जानाति । यस्तु जीव जीवो न जानाति स सम्यदृष्टिरेव न भवति । ततो रागी ज्ञानाभावान्न भवति सम्यग्दृष्टिः । १ मन्दाक्रांता छंद. आसंसारात्प्रतिपदममी रागिणो नित्यमत्ताः सुप्ता यस्मिन्नपदपदं तद्विबुध्यध्वगंधाः । एर्ततेतः पदमिदमिदं यत्र चैतन्यधातुः 7 शुद्धः शुद्धः स्वरसभरतः स्थायिभावत्वमेति ॥ १३८ ॥ ३ इसी तरह "ज्ञानी को सर्व प्रकार के उपभोगों के प्रति विरक्ति होती है "इस कथन की सिद्धि हेतु प्रयुक्त सालंकृत एवं चमत्कृत चम्पूशैली का नमूना भी दृष्टव्य है यथा "इह खल्वध्यवसानोदयाः कतरेऽपि संसार विषयाः कतरेऽपि शरीरविषया: । तत्र यतरे संसार विषयाः ततरे बंधनिमित्तः यतरे शरीर विषय १. समयसार गाथा २०१ - २०२ की आत्मख्याति टीका (अर्थ – जिराके रागादि अज्ञानमय भावों का लेशमात्र भी सद्भाव है, वह श्रुतकेवली जैसा होने पर भी ज्ञानमय भावों के अभाव के कारण श्रात्मा को नहीं जानता। जो श्रात्मा को नहीं जानता वह अनात्मा को भी नहीं जानता क्योंकि स्वरूप से सत्ता और पररूप से सत्ता दोनों के द्वारा एक वस्तु का निश्चय होता है। इसप्रकार जो आत्मा और अनात्मा को नहीं जानता वह जीव तथा प्रजीव को भी नहीं जानता । जो जीव तथा अजीव को नहीं जानता, वह सम्यग्दृष्टि ही नहीं है । भतः रागी सम्यग्ज्ञान के अभाव के कारण सम्यग्दृष्टि नहीं होता | :― २. मन्दाक्रांता छंद का अर्थ प्ररे ( वस्तुस्वरूप को न देखने वाले ) यन्त्र प्राणियों सुम परपदार्थ में रागी हुए अनादिकालीन संसार से सदा उन्मत्त बने हो, जिस चतुर्गति रूप संसारी पर्यायों में लीन हो, वह तेरा स्थान नहीं है, नहीं है, अतः जागो जागो। यहां से जाओ यहां से जानो, तुम्हारा पद वह है जहां चैतन्यबालु अपने परमशुद्ध चैतन्य रस से भरी हुई स्थापने को प्राप्त होती है, वहां तेरा पद है । समयसार कलम १३८
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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