________________
लेखकीय
प्राचार्य अमृतचन्द्र संस्कृत वाङमय के असाधारण साहित्यकार एवं अद्वितीय अध्यात्म रसिक हए हैं। वास्तव में वे प्राचार्य श्रेष्ठ कुन्दकुन्द स्वामी के दिगम्बर दर्शन, तत्त्व नथा अध्यात्म परक् प्राकृत सूत्रों अथवा गाथाओं के मर्मज व्याख्याता, मौलिक ग्रन्थ प्रणेता और अध्यात्म रस के रसिया के रूप में विश्रुत थे। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती कुन्दकुन्दादि प्राचार्यों को हजार वर्षीय दिसम्बर साहित्य, दर्शन के अध्यात्म की परम के मर्म को अपने में यात्मसात् कर अपनी कृतियों व टोकानों द्वारा ईस्वी दशवीं शती के बाद की हजार बर्ष तक की परम्परा को आलोकित तथा अनुप्राणित किया।
आचार्य कुन्दकुद ने जिस अध्यात्म एवं दर्शन का बीज बोया था, उसे अपने अनुपम व्यक्तित्व द्वारा पल्लवित, पुष्पित, फलित और विस्तृत करने का पूर्ण श्रेय प्राचार्य अमृतचन्द्र को ही है। ऐसे महान प्राचार्य एवं उनकी अनुपम कृतियों को जनसाधारण ही नहीं, अपितु विद्वज्जन भी विस्मृत कर बैठे थे। यदि आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी का उदय न हुआ होता तो प्राचार्य कन्दकन्द की दो हजार वर्षीय दिगम्बर दर्शन की तत्वज्ञान व अध्यात्म की परम्परा बीसवीं सदी के अन्त तक लुप्त प्रायः हो गई होती। कानजी स्वामी के कारण अब प्राचार्य कुन्दकन्द एवं प्राचार्य अमृतचन्द्र का व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व न केबल आलोकित ही हुआ है, बल्कि विद्वज्जनों तथा सर्वसामान्य जनों के आकर्षण, अध्ययन और रसास्वादन का विषय बनने लगा है।
कानजी स्वामी सोनगढ़ (सौराष्ट्र के द्वारा वर्तमान बीसवीं सदी में एक महान आध्यात्मिक क्रांति का शंखनाद किया गया। उनके द्वारा अध्यात्म युग का पुननिर्माण हुअा 1 उनके व्यापक प्रचार व प्रसार मे एक ओर जन अध्यात्म का प्रकाश देश तथा विदेशों में फैला तथा दूसरो प्रोर प्राचार्य कुन्दकुन्द तथा अमृतचन्द्र का प्रभाव सूर्य तथा चन्द्र की भांति प्रगट हुआ ।
{ xii )