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अंगपण्णत्ति - जो गुण अवगुण की परीक्षा न करके केवल विनय से हो मोक्ष मानता है वैनेयिकवादी मिथ्यादृष्टि है उसके बत्तीस भेद निम्न प्रकार हैं।
राजा, देव, ज्ञानी, यति, वृद्ध, बालक, माता और पिता इन आठों का मन' से, वचन से, काय से और दान से सत्कार करना चाहिये । इस प्रकार वैनेयिकवादी के आठ गुणीत चार अर्थात् बत्तीस भेद होते हैं ।।२८।। ॥ इस प्रकार वैनेयिकवादी के बत्तीस भेदों का कथन समाप्त हुआ।
एवं सच्छंदविट्ठीणं ...." वादाउलकारणं । तिसट्टितिसया णेया सव्वसंसारकारणं ॥ २९ ॥
एवं स्वच्छंददृष्टीनां... "व्याकुलकारणं ।
त्रिषष्टिः त्रिशतानि ज्ञेयानि सर्वसंसारकारणानि ॥ इस प्रकार स्वच्छन्द अर्थात् अपने मन माना है श्रद्धान जिनका ऐसे पुरुषों ने मिथ्या मतों की कल्पना की है । जो पाखण्डियों के व्याकुलता का कारण है । अर्थात् जो जीवों को व्याकुलता की उत्पादक है तथा संसार की कारणभूत है। संसार भ्रमण की कारण है। उनके तीन सौ सठ भेद जानना चाहिये । अर्थात् स्वच्छन्द दृष्टिवाले मिथ्यादृष्टियों के द्वारा रचित तीन सौ त्रेसठ मिथ्यात्व भेद जीव को आकुलता उत्पन्न करते हैं। तथा उनके वशीभूत हुआ प्राणी संसार में भटकता रहता है ॥ २९ ॥
__आगे अन्य भी एकान्तवादों को कहते हैंपउरसेण विणा पत्थि थणक्खीराइसेवणं । आलसड्ढो णिरुस्साहो फलं किंचि ण भुजई ॥३०॥ पौरुषेण विना नास्ति स्तनक्षीरादिसेवनं । आलस्याढयो निरुत्साहः फलं किंचिन्न भुक्ते ॥
पुरिसवादो-पौरुषवादः। पौरुषवाद-पुरुषार्थवादी पुरुषार्थ से ही सब कुछ मानता है वह कहता है कि आलसी निरुत्साही कुछ भी फल को प्राप्त नहीं कर सकता। १. मन से उनके गुणों का चिन्तन करना । २. वचन से उनकी स्तुति करना । ३. काय से पैर दबाना आदि सेवा करना । ४. उनको इच्छित वस्तु प्रदान करना । ५. पाखंडिणं ।
६. पाखंडिनां ।