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द्वितीय अधिकार
अस्ति नास्ति
अस्ति । अस्ति | नास्ति अस्ति नास्ति नास्ति अवक्तव्य
4 अवक्तव्य अवक्तव्य | अवक्तव्य
जीव | अजीव आस्रव | बंध संवर निर्जरा मोक्ष | पुण्य | पाप
अण्णाणवाइभेया जीवादण्णाणभावसंजत्ता। तेसट्ठी जिणभणिया मिच्छाभावेण संतत्ता ॥ २७ ॥ अज्ञानवादिभेदाः जीवादज्ञानभावसंयुक्ताः ।
त्रिषष्टिः जिनभणिता मिथ्यात्वभावेन संतप्ताः॥ कोई आचार्य अज्ञानवादी के सड़सठ' भेद मानते हैं-इन त्रेसठ भेदों में चार भेद और मिलाने से सड़सठ भेद होते हैं। वे चार भेद निम्न प्रकार हैं। 'प्रथम शुद्ध पदार्थ ऐसा लिखना, उसके ऊपर अस्ति, नास्ति, अस्ति-नास्ति और अवक्तव्य यह चार लिखना, इन दोनों पंक्तियों से चार भंग उत्पन्न होते हैं। जैसे शुद्ध पदार्थ अस्ति रूप है या नास्ति रूप है, अस्ति-नास्ति रूप है या अवक्तव्य है, ऐसे कौन जानता है। इन चार भंगों को पूर्वोक्त वेसठ भंगों में मिला देने से अज्ञानवादियों के ६७ ( सड़सठ ) भेद होते हैं। ___ इस प्रकार मिथ्यात्व से संतप्त जीवादि अज्ञान भाव से संयुक्त अज्ञानवाद के त्रेसठ भेद जिनेन्द्र भगवान ने कहा है। इस अज्ञानवाद से मोहित होकर जीव संसार में भ्रमण करता है ।। २७ ।। ॥ इस प्रकार अज्ञानवाद का कथन समाप्त हुआ।
वैनेयिक वादी का वर्णन मणवयणदेहदाणगविणओ णिवदेवणाणिजदिउढ्ढे । वाले मादरपियरे कायवो चेदि अट्ठ चदु ॥ २८॥ __ मनोवचनदेहदानगविनयो नृपदेवज्ञानियति वृद्धेषु ।
बाले मातापित्रौः कर्तव्यश्चेति अष्ट चतुः॥ एवं विणयवादो बत्तीसा ३२-एवं वैनयिकवादः द्वात्रिंशत् ३२ को जाणइ सत्तचऊ भावं सुद्धं खु दोणिपंत्तिभवा । चत्तारि होति एवं अण्णाणोणं तु सत्तट्ठी ।। १ ।।
को जानाति सत्वचतुष्कं भावं शुद्धं खलु द्विपंक्तिभवाः । चत्वारो भवन्त्येवं अज्ञानिनां तु सप्तषष्टिः ।