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द्वितीय अधिकार काँटे को आदि लेकर जो तीक्ष्ण ( चुभने वाली ) वस्तु है उनके तीक्ष्णपना कौन करता है ? और नर, मग तथा पक्षी आदिकों के अनेक तरहपना जो पाया जाता है उसे कौन करता है ? ऐसा प्रश्न होने पर यही उत्तर मिलता है कि सबमें स्वभाव ही है । __ ऐसे सबको कारण के बिना स्वभाव से ही मानना स्वभाववाद का अर्थ है ।। २३ ।।
इस प्रकार कालादि की अपेक्षा एकान्त पक्ष के ग्रहण कर लेने से क्रियावाद होता है।
एवं चदुणवपणयाणं रयणं काऊणं असीदिसदकिरियावादागं भंगा। तं जहा। कालादो जीवो सदा अत्थि १, कालादो जीवो परदो अस्थि २, कालादो जीवो णिच्चो अत्थि ३, कालादो जीवो अणिच्चो अस्थि ४, इदि अजीवादिसु अटुसु भंगा णादव्वा मासिदण भंगा असीदिसदं १८० हवंति।
एवं चतुर्नवपंचानां रचनां कृत्वा अशीतिशतक्रियावादानां भंगाः । तद्यथा-कालतो जीवः स्वतोऽस्ति १, कालतो जीवः परतोऽस्ति २, कालतो जोवो नित्योऽस्ति ३, कालतो जीवोऽनित्योऽस्ति ४, इति अजीवादिषु अष्टसु भंगा ज्ञातव्याः........."आश्रित्य भंगा अशीतिशतं १८० भवन्ति ।
काल' ईश्वर आत्मा | नियति | स्वभाव | जीव | अजीव | पुण्य | पाप आस्रव संवर | निर्जरा | बंध | मोक्ष स्वतः परतः | नित्य अनित्य अस्ति
इस प्रकार चार नौ पांच की रचना करने से एक सौ अस्सी क्रियावादियों के भंग होते हैं। जैसे काल से जीव सदा स्वतः अस्ति है। काल में जीव परतः अस्ति है। काल से जीव नित्य है। काल से जीव अनित्य है। इस प्रकार जीव के चार भेद हुए हैं। इसी प्रकार अजीव आदि आठ
.. १. काल भेद ३६, ईश्वर भेद ३६, आत्म भेद ३६, नियति भेद ३६ स्वभाव .....भेद ३६ एवं १८० ।