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द्वितीय अधिकार
५७ ( अपने को जानने वाला ) ही है, नित्य ही है, पर को प्रकाश करने वाला (दूसरे ज्ञेय पदार्थों को जानने वाला) ही है, जीव अस्तिरूप है, वा नास्तिरूप ही है इत्यादि रूप से क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादियों के ( तीन सौ त्रेसठ ) पाखण्डों का विस्तार पूर्वक वर्णन करता है। आगे उन तीन सौ त्रेसठ मतों का कथन सुनो ।। १५-१६-१७॥
अत्थि सदो परदो वि य णिच्चाणिच्चत्तणेण णवअट्ठा । कालोसरप्पणियदि सहावदो होंति तब्भेया ॥ १८ ॥
अस्ति स्वतः परतोऽपि च नित्यानित्यत्वेन नवार्थाः।
कालेश्वरात्मनियतिस्वभावतः भवन्ति तभेदाः॥ स्वतः अस्ति, परतः अस्ति, नित्य, अनित्य इन चार से जीवादि नौ पदार्थों के साथ गुणा करने से ३६ भेद होते हैं। इन छत्तीस भेदों को काल, ईश्वर, आत्मा, नियति और स्वभाव इन पांच से गुणा करने पर एक सौ अस्सी भेद होते हैं ॥ १८ ॥
कालवाद का कथन सव्वं कालो जणयदि भूदं सव्वं विणासदे कालो। जागत्ति हि सुत्तेसु वि ण सक्कदे वंचिदु कालो ॥१९॥
सर्व कालो जनयति भूतं सर्व विनाशयति कालः । जागति हि सुप्तेष्वपि न शक्यते वंचितु कालः ॥
इदिकालवादो-इतिकालवादः काल ही सबको उत्पन्न करता है, और काल ही सब का नाश करता है, सोते हुए प्राणियों में काल ही जागता है, ऐसे काल के ठगने को कौन समर्थ हो सकता है। इस प्रकार काल से ही सबको मानना यह कालवाद का अर्थ है ।। १९ ।। इति कालवाद ।
ईश्वरवाद का कथन जीवो अण्णाणी खलु असमत्थो तस्स जं सुहं दुक्खं । 'सग्गं णिरयं गमणं सव्वं ईसरकयं होदि ॥ २० ॥
जीवोऽज्ञानी खलु असमर्थस्तस्य यत्सुखं दुःखं । स्वर्गे नरके गमनं सर्व ईश्वरकृतं भवति ॥
ईसरवादो-ईश्वरवादः १. 'णायं गमणं सव्वं ईसरकयं होदि' पाठः पुस्तके । आगमानुसारेण परिवर्तितः।