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अंगपण्णत्ति .... त्रिकशून्यपंचवर्गात्रिकलक्षाणि द्वीपजलधिप्रज्ञप्तौ ॥
सार्धद्वयोद्धारसागरमितं द्विपजलधीनां ॥ पदानि ३२५००० । श्लोक १६६०३७५ ० १९८७५०० । वर्ण ५३१३२०००६३६०००००।
द्वीपसागर प्रज्ञप्ति में अढाई उद्धार सागर प्रमाण द्वीप समुद्रों का वर्णन है । अर्थात् जम्बूद्वीप आदि स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त पच्चीस कोटाकोटि उद्धार पल्प प्रमाण द्वीपसमुद्र का विस्तार, उसमें देव आदि का विस्तार रूप से कथन किया गया है ।। ८॥ .
वित्थारं सटाणं तत्थठियजोइसाण ठाणाणं । भोमाणं ... ... तत्थाऽकिट्टिमजिणाणं च ॥९॥ विस्तारं संस्थानं तत्रस्थितज्योतिषां स्थानानां ।
भौमानां................"तत्राकृत्रिमजिनानां च ॥ पासाववासतोरणमंडवमुहमंडवादिमालाणं । दिवसायरपरियम्मे करेदि वित्यार वण्णणयं ॥१०॥
प्रासावव्यासतोरणमंडपमुखमंडवादिमालानां ।
द्वीपसागरपरिकर्मणि क्रियते विस्तारेण वर्णनं ॥ वावण्णं छत्तीसं लक्खसहस्सं पयस्स परिमाणं । ५२३६००० ।
द्विपंचाशत् षट्त्रिंशल्लक्षसहस्रं पदानां परिमाणं । __ सारे द्वीप समुद्रों में स्थित ज्योतिषदेवों के स्थान, व्यन्तर देवों के भवन उनमें स्थित अकृत्रिम जिनमन्दिर, उनमें स्थित प्रसाद, उनका व्यास, तोरण मंडप, मुख मंडप का माला, द्वीपसागर आदि का विस्तार से कथन किया जाता है ॥९॥
एक राजू लम्बा चौड़ा और एक लाख योजन ऊंचा तिर्यग्लोक है। उसमें पच्चीस कोटा-कोटि उद्धार पल्यों के रोमों के प्रमाण द्वीप एवं समुद्रों की संख्या है, इनमें आधे द्वीप हैं और आधे समुद्र हैं। यह द्वीप और समुद्र समवृत्त है। इसमें प्रथम जम्बुद्वीप है, अन्तिम स्वयंभूरमण समुद्र है। जम्बद्वीप एक लाख योजन विस्तार वाला है। उसके आगे-आगे द्वीप समुद्रों का विस्तार द्विगुणा द्विगुणा है। इनमें पर्वत, नदी आदि स्थित हैं । इनमें ४५८ ( चार सौ अट्ठावन ) अकृत्रिम जिनमन्दिर हैं । __ इनमें जम्बद्वीप की जगति शाल्मली वृक्ष आदि पर व्यन्तर देवों के भवन तथा भवनों में जिन मन्दिर हैं । उनको ऊँचाई, उनमें स्थित वेदिका,