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अंगपाणत्ति दृष्टीनां त्रिशतानि त्रिषष्टे: मिथ्यावादानां ।
यत्र निराकारणं खलु तन्नाम दृष्टिवावाङ्गम् ॥ तं जहा-तद्यथाकिरियावायविट्ठीणं कोक्कल-कंठेविद्धि-कोसिय-हरिमंसु-मांधावियरोमस-मुड-अस्सलायणादीणं असोदिसबं ( १८०) ।
क्रियावादिनां कौत्कल-कंठेविद्धि-कौशिक-हरिश्मश्रु-मांधपिकरोमश-मुंड-आश्वलायनादीनां आशीतिशतं ( १८०) __ उस दृष्टिवाद जिनागम में पाँच शून्य, शून्य, छह पाँच आठ छह आठ शून्य और एक इन अंकों को "अंकानां वामतो गति" इस नियम क्रम से व्यास करने से एक सौ आठ करोड़, अड़सठ लाख, छप्पन हजार, पाँच ( १०८,६८,५६००५ ) मध्यम पदों की संख्या जानना चाहिए ।। ७२ ॥
दृष्टिवाद अंग की पद संख्या एक सौ आठ करोड़, अड़सठ लाख, छप्पन हजार पाँच है ( १०८,६८,५६००५ )। इस अंग की श्लोक संख्या पाँच पद्म, पचपन शंख, पच्चीस नील, अस्सी खरब, अठारह अरब, तेहत्तर करोड़, चौरानवें लाख, सत्ताईस हजार एक सौ सात ( ५५५२५८०१८७३९४२७१०७ ) है। इस अंग के अक्षरों को संख्या एक सौ सतहत्तर पद्म, अड़सठ शंख, पच्चीस नील, पैसठ खरब, निन्यानवें अरब, छयासठ करोड़ सोलह लाख, सड़सठ हजार, चार सौ चालीस (१७७,६८,२५,६५, ९९,६६,१६,६७,४४० ) है।
जिस अंग में तीन सौ त्रेसठ मिथ्यावादियों (मिथ्यादृष्टियों) का निराकरण किया जाता है, उसको दृष्टिवाद अंग कहते हैं ।। ७३ ॥
मूल में क्रियादृष्टि, अक्रियादृष्टि, अज्ञानदृष्टि और विनयदृष्टि के भेद से दृष्टियाँ चार प्रकार की हैं। ___ इसमें क्रियादृष्टियों ( क्रियावादियों ) के एक सौ अस्सी भेद हैं । जैसे प्रथम ‘अस्ति' ऐसा पद लिखना । उस 'अस्ति' के चार भेद हैं । स्वचतुष्टय अपेक्षा अस्ति, परचतुष्टय से 'अस्ति' है । 'नित्य अस्ति' अनित्य 'अस्ति' । इन चार पदों के ऊपर 'जीव' 'अजीव' 'आस्रव' 'बंध' 'संवर' 'निर्जरा' 'मोक्ष' 'पुण्य' और 'पाप' रूप नव पदार्थ को लिखना । इसके बाद 'काल' 'ईश्वर' 'आत्मा' 'नियति' 'स्वभाव' इस प्रकार पाँच पद लिखना। इस प्रकार १४४४९४५ का गुणा करने पर १८० भंग होते हैं।
क्रियावादी कहता है-जीव अपने चतुष्टय की अपेक्षा अस्ति है । पर