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अंगपण्णत्ति चतुरशीतिलक्षाणि कोटिः पदानि नित्यं विपाकसूत्रे च ।
कर्मणां बहुशक्तिः शुभाशुभानां हि मध्यमका ॥ तिव्वमंदाणुभावा दव्वे खेत्तेसु काल भावे य । उदयो विवायरूवो भणिज्जइ जत्थ वित्थारा ॥ ६९ ।। तीव्रमन्दानुभावा द्रव्ये क्षेत्रे काले भावे च ।
उदयो विपाकरूपो भण्यते यत्र विस्तारेण ॥ विपाकसूत्रांगस्य पदानि १८४०००००। श्लोकाः ९४००२७७०३५६००००० । वर्णाः ३००८०८८६५१३९२००००० ।
इदि विवागसुत्तंग एकादसं गदं-इति विपाकसूत्रांग एकादशं गतं ।
विपाकसूत्र नामक ग्यारहवें अङ्ग में एक करोड़ चौरासी लाख नित्य (मध्यम ) पद हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के आश्रय से परिणत शुभाशुभ कर्मों की बह शक्ति,मध्यम शक्ति तथा तीव्र मन्द अनुभाग जिसमें विस्तार रूप से वर्णन किया जाता है। वा विपाक का अर्थ है उदय फल देना। उस फलदान शक्ति का वर्णन करने वाला विपाकसूत्र है ॥ ६८ ॥
विशिष्ट या नाना प्रकार के पाक को विपाक कहते हैं । अनन्तानुबन्धि आदि ( तीव्र मन्द आदि ) कषायों के निमित्त से ज्ञानावरणादि आठ कर्मों के विशिष्ट पाक का होना विपाक है । अथवा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव लक्षण निमित्त भेद से उत्पन्न हुआ नाना प्रकार का कर्मों का पाक ( फल दान शक्ति ) को विपाक कहते हैं। इसका दूसरा नाम अनुभाग या अनुभव है । ज्ञानावरणादि आठ कर्मों के तीव्र मन्द मन्दतर आदि फल-दान शक्ति का जिसमें कथन है, वह विपाकसूत्र अंग कहलाता है ।। ६९ ।।
इस अंग के पदों की संख्या एक करोड़, चौरासी लाख है। श्लोक संख्या नौ शंख, चालीस नील, दो खरब, सतहत्तर अरब, तीन करोड़, छप्पन लाख है । इसके अक्षरों की संख्या तीन पद्म, अस्सी नील, अठासी खरब, पैंसठ अरब, तेरह करोड़ बानवे लाख प्रमाण है। ॥ इस प्रकार विपाकसूत्र का कथन समाप्त हुआ।
ग्यारह अंग के पदों की संख्या एयारंगपयाणि च कोडीचउपंचदहसुलक्खाई। वि सहस्सादो वोच्छे पुन्वपमाणं समासेण ॥७॥
एकादशाङ्गपदानि च कोटिचतुष्कपंचदशलक्षाणि । अपि सहने द्वे वक्ष्ये पूर्वप्रमाणं समासेण ॥