________________
अंगपण्णत्ति-- घोरोपसर्ग आदि का वर्णन जिसमें पाया जाता है, उसे अन्तकृतद्दशांग कहते हैं।
अन्तकृत दशांग के पद, श्लोक और अक्षरों को संख्या का कथन
अन्तकृद्दशांग के पद तेईस लाख, अट्ठाईस हजार हैं (२३२८०००) इस अङ्ग के श्लोकों को संख्या एक सौ अट्ठारह नील, तिरानबे खरब, उनचालीस अरब, उनचालीस करोड़, अट्ठासी लाख, बावन हजार (११८,९३,३९,३९,८८,५२००० ) है। तथा अक्षरों की संख्या तीन हजार आठ सौ पाँच नील, अठासी खरब, साठ अरब, छिहत्तर करोड़, बत्तीस लाख, चौतीस हजार ( ३८०५,८८,६०,७६,३२,३४००० ) है । ।। इस प्रकार अन्तकृद्दशांग का कथन समाप्त हुआ ।
अनुत्तरोपपादिक दशांग का कथन तिणहंचउचउदुगणवयाणि चाणुत्तरोपवाददसे । विजयादिसु पंचसु य उववायिका विमाणेसु ॥ ५२ ॥
त्रिनभश्चतुश्चतुर्दिकनवपदानि चानुत्तरोपपाददशके ।
विजयादिषु पंचसु च औपपादिका विमानेषु ॥ पडितित्थं सहिऊण हु दारुवसग्गोपलद्धमाहप्पा । दह दह मुणिणो विहिणा पाणे मोत्तूण झाणमया ॥ ५३ ॥
प्रतितीर्थ सोढ्ववा हि दारुणोपसर्ग उपलब्धमाहात्म्याः ।
दश दश मुनयो विधिना प्राणान् मुक्त्वा ध्यानमयाः॥ विजयादिसु उववण्णा वण्णिज्जंते सुहावसुहबहुला । ते णमह वीरतित्थे उजुदासो सलिभद्दक्खो ॥ ५४॥ विजयादिषपपन्ना वर्ण्यन्ते स्वभावसुखबहुलाः।
तान् नमन वीरतोर्थे ऋजुदासः शालिभद्राख्यः॥ सुणक्खत्तो अभयो वि य धण्णो वरवारिसेणणंदणया। गंदो चिलायपुत्तो कत्तइयो जह तह अण्णे ॥५५॥
सुनक्षत्रोऽभयोऽपि च धन्यः वरवारिषेणनन्दनौ ।
नन्दः चिलातपुत्रः कार्तिकेयो यथा तथा अन्येषु ॥ १. यथा वर्धमान तीर्थे एते तथान्येषु तीर्थेषु अन्ये दश ।