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अंगपण्णत्त
आरम्भत्याग प्रतिमा - कृषि, वाणिज्य आदि आरम्भ का त्याग
करना ।
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परिग्रहत्याग प्रतिमा - परिमित वस्त्र के सिवाय दश प्रकार के परिग्रह का त्याग करना ।
अनुमतित्याग प्रतिमा - कृषि आदि आरम्भ परिग्रह और विवाह आदि लौकिक कार्यों में अनुमति देने का त्याग करना ।
उद्दिष्टत्याग प्रतिमा - घर का त्याग करके मुनियों के पास वन में - जाकर गुरु के समक्ष व्रत धारण कर एक लंगोटी और एक खण्ड वस्त्र रखना तथा उद्दिष्ट ( अपने लिए बनाये हुए आहार ) का त्याग कर भिक्षावृत्ति से भोजन करना । यह श्रावक की ११ प्रतिमा हैं । इनका विस्तार पूर्वक वर्णन उपासकाध्ययनांग में किया गया है ।
श्रावक की ग्यारह प्रतिमा का पालन करने के लिए श्रावक के १२ व्रत हैं, उनका वर्णन भी उपासकाध्ययन में है, उनका संक्षेप वर्णन -
संसार में जीव दो प्रकार के हैं- त्रस और स्थावर । उसमें निरपराध सजीवों की संकल्पपूर्वक की जाने वाली हिंसा का त्याग करना अहिंसाणुव्रत है ।
जिस असत्य भाषण से मानव झूठा कहलाता है, राज दण्डनीय और लोक निन्दनीय होता है ऐसे स्थूल असत्य बोलने का त्याग करना सत्याणुव्रत कहलाता है ।
मालिक की आज्ञा बिना किसी वस्तु को ग्रहण नहीं करना चाहे गिरी हुई, भूली हुई हो, अचौर्याणुव्रत कहलाता है।
पाप के भय से दूसरे की स्त्री का सेवन नहीं करना और न दूसरों को • सेवन करने की आज्ञा देना ब्रह्म णुव्रत है |
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धन, धान्य, दासी, दास आदि दस प्रकार के परिग्रह की सीमा बाँधना परिग्रहपरिमाणुव्रत है ।
जिनसे अणुव्रतों की संपुष्टि, वृद्धि और रक्षा होती है उन्हें गुणवत कहते हैं । ये गुणव्रत तीन हैं- दिग्व्रत, अनर्थदण्डव्रत और भोगोपभोगपरिमाणव्रत ।
निरंकुश तृष्णा को नियन्त्रित करने के लिए दिशा और विदिशाओं में - गमनागमन की मर्यादा करना दिग्व्रत है ।