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प्रथम अधिकार
करे ? किस तरह भोजन करे ? जिससे पाप का बन्ध न हो । अर्थात् गमन, शयन, अशन, वार्तालाप आदि जितनी भी मन-वचन काय की क्रिया ( चेष्टा ) हैं, उनको किस प्रकार करें जिससे पाप कर्मों का आश्रव नहीं होता है ?" इत्यादि प्रश्नों के अनुसार यत्नपूर्वक आचरण करे, यत्नपूर्वक खड़े होना, यत्नपूर्वक बैठना, यत्नपूर्वक (प्रमाद को छोड़कर सावधानीपूर्वक ) शयन करना, यत्नपूर्वक भाषण ( हित, मित, प्रिय, वचन बोलना) करना, यत्नपूर्वक भोजन करना, इससे पाप का बन्ध नहीं होता।" अर्थात् किसी भी क्रियाओं को सावधानीपूर्वक, प्रमाद रहित होकर करने से पाप का बन्ध नहीं होता है । इत्यादि उत्तर रूप वाक्यों के द्वारा मुनिराजों के सारे आचरण का वर्णन है ।। १६-१७ ॥
जिसमें मनि धर्म का निरूपण है उसको आचारांग कहते हैं। किस प्रकार मुनि धर्म का पालन किया जाता है। मुनिराजों की क्रिया कैसी होनी चाहिये आदि का कथन करने वाला आचारांग है ।
मुनिराजों के २८ मूलगुणों का वर्णनमहन्वयाणि पंचेव समिदीओक्खरोहणं । लोओ आवसयाछक्कमवच्छण्हभूसया ॥ १८ ॥
महाव्रतानि पंचैव समितयोऽक्षरोधनं । लोच आवश्यक षट्कं अवस्त्रस्नानभूशयनानि ॥ अदंतवणमेगभत्ती ठिदिभोयणमेव हि । यदीणं यं समायारं वित्थरेवं परूवए ॥ १९ ॥
अदन्तमैकभक्ते स्थितिभोजनमेव हि।
यतीनां यं समाचारं विस्तारेणैव प्ररूपयेत् ॥ आचाराङ्गस्य पदानि १८००० । आचाराङ्गस्य श्लोक संख्या ९१९. ५९२३११८७०००। आचाराङ्गस्य अक्षर संख्या २९९२६९५४१९८४००० इति । ___पंच महाव्रत, पंच समिति, पंचेन्द्रिय निरोध, लोंच, छह आवश्यक, अचेलकत्व, स्नान त्याग, भूमि शयन, अदन्तवन ( दंतौन नहीं करना) एकभुक्ति, स्थिति भोजन, इत्यादि यति जनों के समाचार विधि का आचारांग विस्तार पूर्वक वर्णन करता है ॥ १८-१९ ।।