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अंगपण्णत्ति छंदपमाणपबद्धं पमाणपयमेत्थ मुणह जं तं खु । मज्ञपयं जं आगमभणियं तं सुणह भवियजणा ॥ ४ ॥
छंदः प्रमाणप्रबद्धं प्रमाणपदमत्र जानीहि यत्तत् खलु ।
मध्यमपदं यदागमभणितं तच्छृणुत भव्यजनाः ॥४॥ जिनेन्द्र भगवान् ने अर्थ पद, प्रमाण पद और मध्यम पद के भेद से पद तीन प्रकार का कहा है। उसमें से सर्व प्रथम अर्थ पद की प्ररूपणा करते हैं ॥ २ ॥
जितने अक्षरों के समूह द्वारा अर्थ का समूह जाना जाता है, उसको अर्थ पद कहते हैं । "जैसे तुम शीघ्र ही घट को लाओ" इत्यादि । अर्थात् "रस्सी से बाँधो", "अग्नि को लाओ", घर पर मत जाओ इत्यादि । अनियत अक्षरों के समूह रूप किसी अर्थ विशेषक बोधक वाक्य को अर्थ पद कहते हैं ।। ३ ।।
प्रमाण पद का लक्षण-छन्द प्रमाण से प्रबद्ध अक्षरों के समूह को यहाँ प्रमाण पद जानो। अर्थात् आठ, दश, तेरह, चौदह, सत्रह आदि अक्षर वाले पदों के छन्द के लक्षण के अनुसार नियत संख्या में अक्षरों का प्रमाण प्रमाण पद है। जैसे अनुष्टुप छन्द के पाद आठ अक्षर का होता है-"नमः श्री वर्द्धमानाय" । वसन्ततिलका छन्द में १४ अक्षर होते हैं-"उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौगः" । शिखरिणी छन्द में १७ अक्षर होते हैं-"रसै रुद्रैश्छिन्ना यमनसभला गः शिखरिणी"। वंशस्थ छन्द में १२ अक्षर होते हैं-"जतौ तु वंशस्थमुदीरितं....." इत्यादि छन्दोबद्ध पद को प्रमाण पद कहते हैं। __ हे भव्य जीवो ! आगे की गाथा में आगम कथित मध्यम पद के लक्षण को तथा उसमें स्थित अक्षरों के प्रमाण को कहते हैं उसको सुनो ।। ४ ।।
मध्यम पद में स्थित अक्षरों का प्रमाण सोलससयचोतीसा कोडी तियसीदिलक्खयं जत्थ । सत्तसहस्सटुसयाऽडसीदपुणरुच्चपदवण्णा ॥५॥ षोडशशतचतुस्त्रिशत्कोटयः त्रयशीतिलक्षाणि यत्र ।
सप्तसहस्राणि अष्टशतान्यष्टाशीतिरपुनरुक्तपदवर्णाः॥ मध्यम पद के सोलहसौ चौंतीस कोटि तिरासी लाख सात हजार