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अंगपण्णत्ति
९- लगाम से पीड़ित घोड़े के समान दाँत कटकटाते हुए मस्तक को ऊपर-नीचे करना खलीनित नामक दोष है ।
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१० - जुए से पीड़ित बैल के समान गरदन को लम्बी करके कायोत्सर्ग से स्थित होना युगबन्धर नामक दोष है ।
११ - कपित्थ के समान मुट्ठी बाँधकर कायोत्सर्ग करना कपित्थ नामक दोष है ।
१२ - सिर को हिलाते हुए कायोत्सर्ग करना शिर प्रकम्पित दोष है । १३ - गूंगे के समान हुंकार करते हुए तथा अंगुली आदि से किसी वस्तु का संकेत करते हुए कायोत्सर्ग करना मूक संज्ञा दोष है ।
१४- अँगुली चलाते हुए वा चुटकी बजाते हुए कायोत्सर्ग करना अँगुली चालन दोष है
१५- भ्रकुटि को टेढ़े करते हुए वा भ्रकुटि को नचाते हुए कायोत्सर्ग करना भूक्षेप नामक दोष है ।
१६ - मदपायी के समान शरीर को इधर-उधर झुकाते हुए कायोत्सर्ग करना घूर्णन वा उन्मत्त दोष है ।
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१७- भील की स्त्री के समान अपने गुह्य प्रदेश को अपने हाथ ढकते हुए कायोत्सर्ग करना शबरी गुह्यगूहन दोष है ।
१८- बेड़ी से जकड़े हुए मानव के समान कायोत्सर्ग करना श्रृंखलित नामक दोष है ।
१९- ग्रीवा को ऊपर उठाकर कायोत्सर्ग करना ग्रीवोर्ध्वनयन नामक दोष है।
२०- कायोत्सर्ग करते समय गरदन को अनेक प्रकार से नीचे झुकाना ग्रीवाधोनयन नामक दोष है ।
२१–थूकते-खँखारते हुए कायोत्सर्ग करना निष्ठीवन नामक दोष है । २२- कायोत्सर्ग करते समय शरीर का स्पर्श वपुः स्पर्श नामक दोष
है ।
२३- कृतिकर्म के पच्चीस, सत्ताईस आदि श्वासोच्छ्वास प्रमाण जो कायोत्सर्ग का काल है उसमें न्यूनता करना न्यूनहीन नामक दोष है ।
२४- कायोत्सर्ग करते समय दशों दिशाओं का अवलोकन करते रहना दिगवलोकन नामक दोष है ।
२५ - मायाचार के वशीभूत होकर ऐसा खड़ा रहना जिसको देखकर लोग आश्चर्यचकित हो जाएँ, उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगें उसको या प्रत्यास्थिति नामक दोष कहते हैं ।