________________
तृतीय अधिकार
१९९ वार्तालाप करना उनके रत्नत्रय की कुशल पूछना प्रत्यक्ष वाचनिक उपचार विनय है।
परोक्ष में वचन के द्वारा उनके गुणों का स्मरण करना, उनकी आज्ञानुसार चलना परोक्ष वाचनिक विनय है। प्रत्यक्ष में मानसिक अनुराग प्रगट करना प्रत्यक्ष मानसिक विनय है और परोक्ष में उनके प्रति आंतरिक अनुराग होना उनकी आज्ञा का पालन करना परोक्ष मानसिक उपचार विनय है।
विणयो सासणधम्मो विणओ संसारतारओ विणओ। मोक्खपहो वि य विणओ कायव्वो सम्मदिट्ठीणं ॥२१॥
विनयः शासनधर्मः विनयः संसारतारकः विनयः। मोक्षपथोऽपि च विनयः कर्तव्यः सम्यग्दृष्टिभिः ॥
विणओ गदो-विनयो गतः। विनय का फल-विनय जैनशासन का धर्म है, विनय ही संसार से पार करने वाला है, संसार तारक है। मोक्ष महल में प्रवेश विनय के द्वारा ही होता है अतः विनय मोक्ष का द्वार है । अतः सम्यग्दृष्टि जीवों को पाँच प्रकार के मोक्ष सम्बन्धी विनय को निरन्तर करना चाहिए ॥ २१ ॥
विशेषार्थ मोक्षाभिलाषियों को ज्ञान की प्राप्ति और सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र और तप को निर्मल करने के लिए विनयशील बनना चाहिये । इस प्रकार पाँच प्रकार का विनय, विनय का फल आदि का कथन जिसमें है वह वैनयिक प्रकीर्णक है।
कृतिकर्म प्रकीर्णक कथन किदिकम्मं जिणवयणधम्मजिणालयाण चेत्तस्स । पंचगुरूणं गवहा वंदणहेतुं परूवेदि ॥२२॥
कृतिकर्म जिनवचनधर्मजिनालयानां चैत्यस्य । पंचगुरूणां नवधा ... वन्दनाहेतु प्ररूपयति ॥ साधोणतियपदिक्षणतियणदिचउसरसुवारसावत्ते । णिच्चणिमित्ताकिरियाविहिं च वत्तोस दोसहरं ॥२३॥