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तृतीय अधिकार
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काम पुरुषार्थ के निमित्त स्त्री पुरुष आदि का अनुनय-विनय करना कामतंत्र विनय है ।
किसी से भयभीत होकर नमस्कार आदि करना भय विनय है । यहाँ लौकिक विनय से प्रयोजन नहीं है ।
मोक्ष के साधन भूत सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान आदि का तथा उनके साधक गुरु आदि का सत्कार करना, कषाय और इन्द्रियों का निग्रह करना मोक्ष विनय है ।
निश्चय और व्यवहार के भेद से मोक्ष विनय दो प्रकार का है । स्वकीय निश्चय रत्नत्रय की शुद्धि निश्चय विनय है और उसके आधारभूत पुरुषों ( आचार्य आदि ) के प्रति भक्ति परिणाम व्यवहार विनय है ।
अथवा दर्शन विनय, ज्ञान विनय, तप विनय, चारित्र विनय और उपचार विनय के भेद से मोक्ष विनय पाँच प्रकार वा चार प्रकार का है । ग्रन्थ शुद्ध - जिनेन्द्र कथित शास्त्रों के अक्षर शुद्ध पढ़ना । अर्थ शुद्धअक्षर वाच्य अर्थ शुद्ध पढ़ना । उभय शुद्ध - अक्षर और अर्थ दोनों शुद्ध पढ़ना । काल शुद्ध – स्वाध्याय काल में ही शास्त्रों का पठन करना । विनय - हाथ धोकर शास्त्र को नमस्कार करके तथा श्रुतभक्ति एवं आचार्यभक्ति पढ़कर शास्त्र पढ़ना । उपधान - शास्त्र के अर्थ को ग्रहण करते हुये पढ़ना । बहुमान - बहुत भक्ति करके पढ़ना | अनिव - जिसके पास ग्रन्थों का अध्ययन किया है उसका नाम नहीं छिपाना यह ज्ञान के ८ (आठ) विनय हैं । वा ज्ञान के ये आठ अंग हैं । 3
आलस्य रहित होकर, शुद्ध चित्त से देशकालादि शुद्धि के अनुसार उपरोक्त कथित सम्यग्ज्ञान के आठ अंग सहित यथाशक्ति मोक्ष की प्राप्ति के लिए जिनेन्द्रोपदिष्ट तत्त्वों का गृहण, अभ्यास, पठन, स्मरण, चिन्तन करना ज्ञानविनय है ।
जिनेन्द्र कथित तत्त्व में शंका नहीं करना, निःशंकित तत्त्व है । सांसारिक भोगों की वांछा नहीं करना निष्कांक्षित है ।
जिनधर्म तथा धर्मात्माओं से ग्लानि नहीं करना निजुगुप्सा है । तत्त्व, कुतत्त्व, हेयोपादेय का विचार करके कार्य करना वा कुगुरु, कुदेव की प्रशंसा, स्तुति, सरकार आदि नहीं करना अमूढदृष्टित्व है ।
१. तत्त्वार्थसूत्र अ० नवम— सूत्र २३ ।
२. भगवती आराधना, गा० ११३ । ३. पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, श्लोक ३६ ।