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अंगपण्णत्ति आठ लक्षणों से सुशोभित जिनेन्द्र भगवान् जयवन्त रहें। यह लक्षण का मुख्यता से द्रव्य स्तवन है। चन्द्रप्रभु पुष्पदन्त भगवान् श्वेत वर्ण के हैं। वासुपूज्य और पद्मप्रभु रक्त वर्ण के हैं, मुनिसुव्रत, नेमिनाथ के शरीर का रंग कृष्ण है। पार्श्व और सुपार्श्व हरित वर्ण के हैं शेष सोलह तीर्थङ्करों का शरीर सुवर्ण के समान पीत वर्ण का है। वे प्रभु मुझे सिद्धि प्रदान करें। यह शरीर के रंग को मुख्यता से द्रव्य स्तवन है ।
बैल, हाथी, घोड़ा, बन्दर, चकवा, कमल, स्वस्तिक, चन्द्रमा, गैंडा, भैंसा, शंकर, सेहो, वज्र, मृग, बकरा, मत्स्य, कलश, कछुआ, नील कमल, शंख, सर्प और सिंह ये वृषभादि चौबीस तीर्थंकरों के चिह्न हैं। "बैलादि चिह्नों से शोभित तीर्थंकरों को मेरा नमस्कार हो" ऐसा उच्चारण करना, तोथंकरों की चिह्न की मुख्यतया से द्रव्य स्तवन है।
आदिनाथ प्रभु के शरीर की ऊँचाई, पाँच सौ धनुष, अजितनाथ साढ़े चार सौ धनुष, संभवनाथ की चार सौ धनुष, अभिनन्दन नाथ की साढ़े तीन सौ धनुष, सुमतिनाथ की तीन सौ धनुष, पद्मप्रभु को ढाई सौ धनुष, सुपार्श्वनाथ की दो सौ धनुष, चन्द्रप्रभु की डेढ़ मी धनुष, पुष्पदन्त की सौ धनुष, शोतलनाथ का नब्बे धनुष, श्रेयांसनाथ की अस्सी धनुष, वासुपूज्य की सत्तर धनुष, विमलनाथ की साठ धनुष, अनन्तनाथ की पचास धनुष, धर्मनाथ की पैंतालीस धनुष, शान्तिनाथ की चालोस धनुष, कुथुनाथ की पैंतोस धनुष, अरहनाथ की तीस धनुष, मल्लिनाथ की पच्चीस धनुष, मुनिसुव्रतनाथ को बीस धनुष, नमिनाथ की पन्द्रह धनुष, नेमिनाथ की दश धनुष, पारसनाथ की नौ हाथ और म.वीर की सात हाथ प्रमाण थी। उन भगवान् को मैं नमस्कार करता हूँ। यह शरीर की उत्सेध की अपेक्षा द्रव्य स्तवन है। यह शरीर की ऊँचाई की मुख्यतया से द्रव्य स्तवन है।
तीर्थङ्करों के समवशरण की विभूति की मुख्यता से कथन करना । जैसे बारह योजन विस्तृत मानस्तंभ, सरोवर, निर्मल जल से भरी हुई खातिका, पुष्प वाटिका, प्राकार, नाट्यशाला, स्तूप, हर्म्य (महल) वेदिका, चैत्यवृक्ष, ध्वजा, १२ सभा आदि से शोभित समवशरण के मध्य पीठिका पर अन्तरीक्ष स्थित प्रभु को नमस्कार हो । यह समवशरण के कथन की मुख्यता से द्रव्य स्तवन है ।
शरीर की कान्ति से दशों दिशाओं को स्नान कराने वाले, अपने तेज से सूर्य के तेज को तिरस्कार करने वाले, अपने सौन्दर्य से मनुष्यों के मन