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तृतीय अधिकार
१८५ नोआगम द्रव्य सामयिक के तीन भेद हैं, सामायिक का वर्णन करने वाले शास्त्र के ज्ञाता का शरीर, भावि और तद्व्यतिरेक । ज्ञाता का शरीर भूत, वर्तमान और भविष्य के भेद से तीन प्रकार का है। भूत शरीर के भो तीन भेद हैं-च्युत, च्यावित और त्यक्त । इन तीनों में से शास्त्र का ज्ञाता भूतकाल में किस प्रकार मरण करके शरीर छोड़ कर आया है। आयु के क्षय होने से शरीर छूटा (मरण हुआ) उसको च्युत कहते हैं । अकालमरण से शरीर छूटा है उसको च्यावित कहते हैं और समाधिमरण करके शरीर छोड़ा है उसको त्यक्त कहते हैं । समाधिमरण के भी तीन भेद हैं, इंगनी मरण-जिसमें दूसरों से सेवा नहीं कराई जाती। पादोपगमन मरण-(सब प्रकार के आहार का त्याग कर ध्यानस्थ होकर बैठना, न स्वयं शरीर की चेष्टा सेवा करना, न दूसरों से कराना) और भक्तप्रत्याख्यान-(मरण के अन्तर्मुहूर्त से लेकर उत्कृष्ट १२ वर्ष तक समाधि की साधना करके अन्त समय में सब प्रकार के आहार का त्याग कर प्राणों का विसर्जन करना। जो जोव भविष्य में सामायिक विषय का ज्ञाता होगा वह भावि नोआगम द्रव्य सामायिक है । तद्व्यतिरेक नोआगम द्रव्य सामायिक के दो भेद हैं--कर्म, नोकर्म । सामायिक करते हुए जीव के द्वारा उपार्जित शुभकर्म प्रकृतियाँ नोआगम द्रव्यकर्म तद्व्यतिरेक है। सामायिक भावों में सहायक सचित्त (उपाध्याय), अचित्त (शास्त्रादि), मिश्र (शास्त्रग्रहण किये हुए उपाध्याय आदि) नोकर्म तद्व्यतिरेक है । यह सर्व द्रव्य सामायिक भेद है इनमें मुख्य है मनोज्ञ-अमनोज्ञ द्रव्यों में रागद्वेष नहीं करना।
णामगामणयरवणादिखेत्तुसु इट्ठाणि?सु रायदोसणियट्टी खेत्तसामाइयं ।। ४॥
नामग्रामनगरवनादिक्षेत्रेषु इष्टानिष्टेषु रागद्वेषनिवृत्तिः क्षेत्रसामायिकं ॥४॥
इष्ट, अनिष्ट, नाम, ग्राम, नगर, वन (उद्यान) आदि क्षेत्र में रागद्वेष नहीं करना क्षेत्र सामायिक है ॥ ४ ॥
वसंताइसु उडुसु सुक्ककिण्हाणं पक्खाणं दिणवारणक्खत्ताइसुच तेसु कालविसेसेसु तं णियट्टो कालसामाइयं ॥५॥
वसंतादिषु ऋतुषु शुक्लकृष्णयोः पक्षयोः दिनवारनक्षत्रादिषु च तेषु कालविशेषेषु तन्निवृत्तिः कालसामायिकं ।। ५ ॥
वसंत, ग्रीष्म आदि ऋतुओं में शुक्ल, कृष्ण पक्ष में, दिन, वार