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द्वितीय अधिकार
१४७ १३०३२९२५०१५ योजन अगम्य क्षेत्र है क्योंकि मेरु से ग्यारह सौ इक्कीस योजन दूर रहकर ही ज्योतिष देव संचार करते हैं।
सर्व प्रथम भूमिभाग से सात सौ नब्बे योजन ऊपर जाकर तारकाएँ विचरण करती हैं । इससे दश योजन ऊपर सूर्य, सूर्य से अस्सी योजन ऊपर चन्द्रमा, इससे चार योजन ऊपर नक्षत्र, इससे चार योजन ऊपर बुध, इससे तीन योजन ऊपर शुक्र, शुक्र से तीन योजन ऊपर जाकर बृहस्पति, बृहस्पति से तीन योजन ऊपर मंगल और मंगल से तीन योजन ऊपर शनिचर भ्रमण करता है। सूर्य से चार अंगुल नीचे केतु के विमान का ध्वज दण्ड है और चन्द्रमा के चार अंगुल नीचे चन्द्र का विमान है। __जम्बूद्वीप से लेकर मानुषोत्तर पर्वत तक के मनुष्य लोक में पाँचों प्रकार के ज्योतिषीदेव निरन्तर गमन करते हुए मेरु की प्रदक्षिणा देते हैं और मनुष्य लोक से बाहर स्थित ज्योतिष देव स्थिर रहते हैं।
जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकोखण्ड, कालोदधिसमुद्र, अर्द्धपुष्करद्वीप इन ढाईद्वीप और दो समुद्र में स्थित ज्योतिषी देवों के संचार का क्षेत्र है।
इन ज्योतिषी देव के गमन करने के मार्ग को चार क्षेत्र कहते हैं।
सूर्य और चन्द्रमा का चार क्षेत्र सर्वत्र ५१०४८ योजन चौड़े तथा उस उस द्वीपसागर की परिधि प्रमाण है । दो-दो चन्द्र वा सूर्य का एक ही चार क्षेत्र है। प्रत्येक चन्द्रमा के चार क्षेत्र में पन्द्रह और सूर्य के प्रत्येक चार क्षेत्र में एक सौ चौरासी गलियाँ हैं । चन्द्रमा को गलियों का अन्तराल सर्वत्र ही ३५००० योजन तथा सूर्य की गलियों का अन्तराल दो योजन है। क्योंकि चार क्षेत्र समान होते हुए भी, गलियों की हीनाधिकता होने से, गलियों के हीनाधिकता के कारण गलियों के अन्तराल अन्तर पड़ता है। अर्थात् चन्द्रमा की गलियाँ कम हैं अतः उनका अन्तराल अधिक है
और सूर्य की गलियाँ अधिक होने से अन्तराल कम है। प्रत्येक गली का विस्तार अपने-अपने बिंब के विस्तार के समान है। अर्थात् चन्द्रमा के पथ का विस्तार चन्द्र बिम्ब के बराबर ५६ ४ २८ योजन तथा सूर्य पथ का विस्तार ४८ + २८ योजन चौड़ा ऊँचा है ।
चन्द्र और सूर्य प्रतिदिन आधी-आधी गली का अतिक्रमण करते हुए अगली-अगली गलो को प्राप्त होते हैं-शेष आधी गली में वे नहीं जाते