________________
९८
अंगपण्णत्ति ......
सम्यग्दर्शन से अधिष्ठित अणुव्रत और महाव्रत आदि गुणों के निमित्त से अवधिज्ञानावरण कर्मों का क्षयोपशम होता है। उस क्षयोपशम से जो अवधिज्ञान होता है, उसको गुणप्रत्यय अवधिज्ञान कहते हैं ।
भवप्रत्यय अवधिज्ञान तो देशावधि ही होता है। गुणप्रत्यय अवधि के तीन भेद हैं देशावधि, परमावधि और सर्वावधि । गुणप्रत्यय देशावधि नियम से तिर्यञ्च और मनुष्यों के ही होता है ।। ७० ।।
विशेषार्थ संयम का अवयव होने से सम्यग्दर्शन को देश कहते हैं।' सम्यग्दर्शन ही जिसमें कारण है, अहिंसादि व्रत कारण नहीं है उसको देशावधि कहते हैं। अथवा 'देश' का अर्थ कुछ अंश होता है जो अवधिज्ञान सर्वावधि
और परमावधि से कुछ कम विषय को जानता है अतः इसको देशावधि कहते हैं। ___ 'सर्व' का अर्थ सम्पूर्ण या उत्कृष्टवाची है। जो सम्पूर्ण रूपी पुद्गल को जानता है, उत्कृष्ट है उसको सर्वावधि कहते हैं । अथवा सर्व का अर्थ केवलज्ञान है, उसका विषय जो अर्थ होता है वह भी उपचार से सर्व कहलाता है । सर्व ( केवलज्ञान ) जिसकी मर्यादा है, अर्थात् जो केवलज्ञान होने पर ही छूटता है उसको सर्वावधि कहते हैं। अथवा सर्व रूपी द्रव्य इसका विषय होने से यह सर्वावधि कहलाता है।
परम अर्थात् असंख्यात लोकमात्र संयम के भेद ही जिस ज्ञान की अवधि ( मर्यादा ) है, वह परमावधिज्ञान कहा जाता है । अवरं देसोहिस्स य णरतिरिए वदि संजदह्मि वरं । भवपच्चयगो ओही सुरणिरयाणं च तित्थाणं ॥ ७१ ॥
अवरं देशावधेश्च नरतियक्ष भवति संयते वरं।
भवप्रत्यहकोऽवधिः सुरनारकाणां च तीर्थकराणां ॥ णाणाभेयं पढमं एयवियप्पं तु विदियमोही खु । परमोही सव्वोही चरमसरीरिस्स विरदस्स ॥ ७२ ॥ नानाभेदं प्रथमं एकविकल्पस्तु द्वितीयोऽवधिः खलु ?। परमावधिः सर्वावधिः चरमशरीरिणः विरतस्य ॥
१. ध. १३/५.५.५३/२९१/१