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द्वितीय अधिकार
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साथ वर्णन करते हैं तब वस्तु अस्ति अवक्तव्य होती है क्योंकि नास्ति के बिना अस्ति का कथन नहीं हो सकता, अतः स्यात् अस्ति अवक्तव्य है ।। ५५ ।।
जिस समय पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा लेकर वर्णन किया IT है तब नास्ति वक्तव्य है क्योंकि अस्ति के बिना नास्ति का कथन नहीं हो सकता । अतः वस्तु को कथंचित् नास्ति अवक्तव्य जानना चाहिए ।। ५६ ।।
जिस समय स्व द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का और पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा अस्ति नास्ति का क्रम से कथन करते हैं तो स्याद् अस्ति नास्ति अवक्तव्य होता है । क्योंकि वस्तु के दोनों धर्मों का युगपत् कथन करना वचनों के द्वारा शक्य नहीं है । एक समय में एक ही धर्म का कथन होता है परन्तु अनेक धर्म वस्तु में एक साथ रहते हैं अतः वस्तु कथंचित् अस्ति नास्ति अवक्तव्य है ।। ५७ ।।
विशेषार्थ
अर्थात् अस्ति नास्ति दोनों धर्मों से युक्त है उसको एक धर्म से नहीं कह सकते । अतः अस्ति नास्ति अवक्तव्य यह तीसरा धर्म है । इन तीनों का संयोग करने पर सप्तभंग होते हैं । जैसे वस्तु अस्ति ( है ) परन्तु अस्ति रूप ही नहीं है अपितु नास्ति रूप भी है । अतः स्यादस्ति ऐसा कहा जाता है | सर्व वस्तु अपने रूप से है परन्तु पर वस्तु का उसमें अभाव है अतः नास्ति रूप भी है । जैसे किसी ने कहा "यह घट है" इस वाक्य के सुनने पर विधात्मक और निषेधात्मक दोनों ज्ञान होते हैं । "घट है" यह विधि ( अस्ति ) का ज्ञान है और यह "पट नहीं है" ऐसा ज्ञान होता है वह निषेध ( नास्ति ) का ज्ञान है । अतः अस्ति नास्ति दोनों एक साथ होने से अस्ति नास्ति रूप है । इसी प्रकार अस्ति या नास्ति रूप नहीं कह सकते अतः अवक्तव्य है। न तो अस्ति रूप में वस्तु का पूर्ण कथन हो सकता है न नास्ति रूप से पूर्ण कथन हो सकता है । न दोनों को क्रम से स्वतन्त्र कथन कर सकते हैं । अतः कथंचित् अस्ति नास्ति रूप है ।
इस प्रकार नित्य-अनित्य एक-अनेक आदि अनन्त धर्मों में सप्तभंगी लगाना चाहिए क्योंकि वस्तु के प्रत्येक द्रव्य, गुण, पर्याय सप्तभंग रूप हैं।
इस प्रकार प्रत्येक द्विसंयोग, त्रिसंयोग से उत्पन्न होने वाले विधि, निषेध और अवक्तव्य भंगों का त्रित्रि और एक संयोग की संख्या का मिलान ( जोड़ ) करने पर प्रश्नवशात् एक ही वस्तु में अविरोध रूप से सात भंग होते हैं। क्योंकि प्रत्येक वस्तु में नाना नयों के मुख्य और गौणता