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अंगपण्णत्त
वेदन होने के अनन्तर किसका वेदन होता है आदि कथन करने वाला वेदना अनुयोग द्वार है ।
स्पर्श अनुयोग - छूने को स्पर्श कहते हैं । स्पर्श अनुयोग द्वार में नाम स्पर्श, स्थापना स्पर्श, द्रव्य स्पर्श, एक क्षेत्र स्पर्श, अनन्तर क्षेत्र स्पर्श, देशस्पर्श, त्वक्स्पर्श, सर्व स्पर्श, स्पर्श स्पर्श, कर्म स्पर्श, बन्ध स्पर्श, भव्य स्पर्श और भाव स्पर्श रूप (१३) तेरह प्रकार के स्पर्श का निक्षेप, नय, नाम, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, प्रत्यय, स्वामित्व, वेदना, गति, अनन्तर, सन्निकर्ष, परिमाण, भागानुभाग और अल्पबहुत्व इन सोलह अधिकारों के द्वारा निरूपण करता है । इनका विशेष वर्णन षट् खण्डागम की १३वीं पुस्तक और वर्गणा खण्ड में किया गया ।
कर्म अनुयोग द्वार
कर्म का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है क्रिया । निक्षेप व्यवस्था के अनुसार नाम कर्म, स्थापना कर्म, द्रव्य कर्म, प्रत्येक कर्म, समवदान कर्म, अधःकम, पथ कर्म, तपः कर्म, क्रियाकर्म और भावकर्म के भेद से कर्म दश प्रकार के हैं । उन दश प्रकार के कर्मों का निक्षेप, नय, नाम, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, प्रत्यय, स्वामित्व, वेदना, गति, अनन्तर, सन्निकर्ष, परिमाण, भागाभाग और अबहुत्व इन सोलह अधिकारों के द्वारा वर्णन करता है, वह कर्म अनुयोग द्वार है ।
ज्ञानावरणादि नाम यह नाम कर्म है ।
यह कर्म है । इस प्रकार चित्र पासा आदि में कर्म की स्थापना करना स्थापना कर्म है |
जिस द्रव्य की जो सद्भाव क्रिया है अर्थात् जो-जो द्रव्य अपने स्वभाव में परिणमन करता है, वह द्रव्य कर्म है जैसे - ज्ञान दर्शन रूप से परिण मन करता है, वह द्रव्य कर्म है जैसे ज्ञानदर्शन रूप से परिणमन करना जीव द्रव्य की सद्भाव क्रिया है । वर्ण, गन्ध आदि रूप में परिणमन करना पुद्गल द्रव्य की सद्भाव क्रिया है । जीवों और पुद्गलों के गमनागमन में हतुरूप से परिणमन करना धर्म और अधर्म द्रव्य की सद्भाव क्रिया है । सब द्रव्यों के परिणमन में हेतु होना काल द्रव्य की सद्भाव क्रिया है । अन्य द्रव्यों के अवकाश दान रूप से परिणमन करना आकाश द्रव्य की सद्भाव क्रिया है ।
प्रयोग कर्म - योग के निमित्त से आत्मप्रदेश के जो परिस्पन्दन होता है