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मुनितोषणी टीका श्रुतसम्पच्चतुर्दा यथा-(१) बहुश्रुतत्वं, (२) परिचितमत्रत्वं, (३) परिज्ञातोसर्गापवादत्वम् . (४) उदात्तानुदात्तायनुसन्धानपूर्वकयथोचितवर्णोच्चारयितृत्वं चेति । तत्र बहुश्रुतत्वं-यदा यावन्ति मूत्राणि तदा तावत्सर्वपरिज्ञातृत्वम् , परिचितमूत्रत्वं स्वनामादिवत्कदाप्यविस्मृतमूत्रत्वम् । शरीरसम्पच्चतर्दा यथा(१) समचतुरस्रसंस्थानत्वम् , (२) सम्पूर्णाङ्गोपाङ्गत्वम् , (३) प्रतिपूर्णन्द्रियस्वम् , (४) स्थिरसंहनत्वं चेति । वचनसम्पञ्चतुर्दा यथा-(१) आदेयवचनत्वं, (२) मधुरवचनत्वं, (३) मध्यस्थवचनत्वं, (४) स्फुटवचनत्वं चेति । वाचनासम्पच्चतुर्दा यथा-(१) पात्रकुपात्रविवेचकत्वं, (२) कृतपूर्वमूत्रार्थ
__ [२] श्रुतसम्पदा के चार भेद हैं- (१) जिस समय जितने सूत्र हों उन सब का ज्ञान रखना । (२) अपने नामकी तरह सूत्रों को कभी न भूलना। (३) उत्सर्ग अपवादका ज्ञान रग्वना । (४) उदात्त अनुदात्त आदि स्वरों के अनुसन्धान पूर्वक वर्णों का शुद्ध उच्चारण करना।
[३] शरीरसम्पदा के चार भेद- (१) समचोरस संस्थान का होना, (२) अंगउपांगों से अविकल होना, (३) सब इन्द्रियों से परिपूर्ण होना, (४) दृढ संहननका होना।
[४] वचनसम्पदा के चार भेद- (१) आदेय वचन होना, (२) मधुर वचन होना, (३) मध्यस्थ वचन होना, (४) स्फुट वचन होना।
[५] वाचना सम्पदा के चार भेद- (१) शिष्यों में पात्र
શ્રતસમ્પદાના ચાર ભેદ છે. (૧) જે સમયે જેટલા સૂત્ર હોય તે સર્વનું शान राम'; (२) पाताना नामनी म सूत्रीने ही ५७५ न भू (3) ઉત્સર્ગ–અપવાદનું જ્ઞાન રાખવું, (૪) ઉદાત્ત-અનુદાત્ત આદિ સ્વરેના અનુસંધાનપૂર્વક વણેને શુદ્ધ ઉરચાર કરે.
(3) शरीस पहाना या२ - (१) समयरस संस्थाननू डाj (२) 1-34iगोथा म१ि४८ ५y, (3) सब दियोथी परिपूर्ण पा. (४) १८સંવનનનું હોવું.
(४) पयनस पहाना यार से:- (१) माहेय वयन (२) मधुर वयन (3) मध्य२५ पयन, (४) २८ वयन
(५) पायनास-पहाना या२ - (1) शियोमा पात्र -पात्रपायानो