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अनुयोगद्वारसूत्रे एकपदेशनिष्पमा परमाणुः, द्विप्रदेशनिष्पन्नो द्विमदेशिका, त्रिप्रदेशनिष्पन्नत्रिपदेशिकः । एवं चतुष्पदे शकादि यावत् अनन्तप्रदेशिकान्तो वोध्यः । यो यो यावता यावता प्रदेशेन निष्पद्यते स स तत्तत्मदेशिको वोध्य इति भावः । नन्विदं परमाणु
" से किं तं दवप्पमाणे" इत्यादि।
शब्दार्थ-(से कि तं दवप्पमाणे) शिष्य पूछता है कि-हे भदन्त ! द्रव्य प्रमाण क्या है ? - उत्तर-(दविप्पमाणे दुविहे पणत्ते) द्रव्यविषयक वह द्रव्य प्रमाण दो प्रकार का कहा गया है-(तं जहा) वे दो प्रकार ये हैं-(पएसनिफण्णे य विभागनिप्फण्णे य) एक प्रदेश निष्पन्न और दूसरा विभाग निष्पन्न । (से किं तं पएसनिष्फण्णे) हे भदन्त ! प्रदेश निष्पन द्रव्य प्रमाणक्या है ?
उत्तर-(पएसनिष्फण्णे) प्रदेशनिष्पन्नद्रव्यप्रमाण-इस प्रकार से है-(परमाणुपोग्गले दो पएसिए जाव दसपएसिए' सखिज्जपएसिए असंखिज्जपएसिए, अणंतपएसिए-से तं पएसनिप्फण्णे) जो द्रव्य प्रमाण एक दो तीन आदि प्रदेशों से निष्पन्न-सिद्ध होता है, वह प्रदेश निष्पन्न द्रव्य प्रमाण माना गया है-इस प्रदेश निष्पन्न द्रव्य प्रमाण में एक प्रदेश निष्पन्न परमाणु, दो प्रदेशों से निष्पन्न हुआ द्विपदे. शिक द्रव्य तीन प्रदेशों से निष्पन्न हुआ त्रिप्रदेशिक द्रव्य इसी प्रकार
“से कि त दवप्पमाणे" त्याह
शहाथ-(से किं तदव्वप्पमाणे) शिष्य २ छ त !द्र०य. પ્રમાણ શું છે?
उत्तर-(दव्वप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते) द्र०य विषय ते द्रव्यमा २ aaj अपामा मायु छ. (त'जहा) ते मे । मा प्रभारी छ. (पएस निप्फण्णे य विभागनिष्फणे य) में प्रदेश नि०पन्न मरे भी HिIL निपान (से कि त पएसनिप्फण्णे) ! प्रदेश नि०पन्न द्रव्यप्रभा छ?
उत्तर-(पएसनिष्फण्णे) प्रदेश नि०पन्न द्रव्य प्रमाण मा प्रभारी छे. (परमाणुपोग्गले दो परखिए जाव दस पएसिए, संखिज्जपएसिए असखिज्जपएसिए, अणंतपएसिए-से तं पएसनिप्फण्णे) २ ०यप्रभा मे, मे, तर मेरे પ્રદેશથી નિષ્પન્ન–સિદ્ધ–થાય છે, તે પ્રદેશ નિષ્પન્ન દ્રવ્યપ્રમાણુ કહેવાય છે. આ પ્રદેશ નિષ્પન્ન દ્રવ્ય પ્રમાણમાં એક પ્રદેશ નિપન્ન પરમાણુ, બે પ્રદેશાથી નિષ્પન્ન થયેલ દ્વિદેશિક દ્રવ્ય, ત્રણ પ્રદેશથી નિપન્ન થયેલ ત્રિપ્રદે