________________
अनुयोगवन्द्रिका टीका सूत्र २४१ क्षेत्रसमवतारादीनां निरूपणंम् ७१७ तारस्तदुमयसमवतारति द्विविधः। तत्र भरतं वर्षमात्मसमवतारेण आत्मभावे : समवतरति, तदुभयसमवतारेण तु जम्बूद्वीपे समवतरति आत्मभावे च । एवं जम्बू द्वीपादयोऽपि आत्मसमवतारेण आत्मभावे समवतरन्ति तदुभयसमवतारेण एते.. उत्तरोत्तरस्मिन स्वापेक्षया बृहत्पमाणे क्षेत्रविमागे समवतरन्ति आत्मभावे वेति
उत्तर--(खेत्तसमोयारे) धर्मादिक द्रव्यों की जहां वृत्ति होती हैअर्थात् धर्मादिक द्रव्यों का जहां निवास होता है उसका नाम क्षेत्रः है, इस क्षेत्र का जो समवतार है, वह क्षेत्र समवतार है। यह क्षेत्र समवतार (दुविहे पण्णत्ते) दो प्रकार का कहा गया है । (तं जहा) जैसे(आयसमोयारे य तदुभयसमोयारे य) एक आत्मसमवतार और दूसरा . तदुभय समवतार । (भरहे वासे आयसमोयारेणं आयभावे.. समोयरइ, तदमयसमोयारेणं जंबूहीवे समोयरइ आयभावे य)..आत्मसमवतार की अपेक्षा लेकर जब यह विचार किया जाता है कि- भरतक्षेत्र. कहां रहता है ? तब इसका उत्तर यह होता है कि-'भरत क्षेत्र आत्मसमवतार की..अपेक्षा आत्मभाव में रहता है, और तदुभय समनतार की अपेक्षा. जबूद्वीप में रहता है। एवं अपने निजस्वरूप में भी रहता है। (जबूद्दीवे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभय समोयारेणं तिरियलोए समोयरई आयभावे य) जंबूदीप आत्मसम: वतार की अपेक्षा आत्मभाव में रहता है और तदुभय. समवतार की अपेक्षा तिर्यक् लोक में भी रहता है और आत्मभाव में भी रहता है।
त:-- (खेससमोयारे) धादियोनी ल्यां वृत्ति हाय, मेरले કે ધર્માદિક દ્રવ્યનું જ્યાં નિવાસ છે, તેનું નામ ક્ષેત્ર છે. આ ક્ષેત્રસમાવતાર (दविहे पणत्ते) में प्रारना ४३वामा भावेल. छ. (जहा) २
(आयसमोयारे य तदुभयममोथारे य) से मामसमता मान द्वितीय तय समयतार (भरहे वासे आयसमोयारेणं आयभावे समो.', पर आयभावे य) मात्मसभवतानी सपेक्षा थे न्यारे सामान विचार ... કરવામાં આવે છે કે “ભરતક્ષેત્રમાં રહે છે ?” ત્યારે આનો જવાબ આ પ્રમાણે હોય છે કે ભરતક્ષેત્ર આત્મસમવતારની અપેક્ષા આત્મભાવમાં २. छ. अन तलय सभवताना पक्ष दीपमा- २ छतमा. पोताना नि १३५मा ५ २७.. (जंबूहीवे. आयसमोयारेणं आयभावे .. समायरइ, तदुभयसायारेण तिरियलाए समोयरइ. आयभावे य) पूरी५ આત્મસમવતાની અપેક્ષા આત્મભાવમાં રહે છે અને તદુભય સમવતારની અપેક્ષા એ તિર્ધક લોકમાં પણ રહે છે, અને આત્મભાવમાં પણ રહે છે,