________________
६५४
अनुयोगद्वारसूत्रे संख्येयक माप्नुवन्ति, किन्तु यदा आमूलशिखं भृता भवन्ति, तत्र एकोऽपि सर्षपो न मायात, तदा उत्कर्षकं संख्येयकं भवतीति । ननु आमूलशिखमभृतमपि किं किंचिद् भृतमुच्यते ? सत्यम्-आमूलशिखमभृतमपिलोके भृतमुच्यते । यथा कोऽप्यत्र दृष्टान्तोऽस्ति ? इति शिष्येण पृष्टो गुरुराह-स यथा नामकः कश्चिन्मः स्यात् आमलकैभृतः। स मञ्च आमूलशिखमभृतोऽपि लोके भृत इति व्यपदिश्यते । तत्र मचे एक आमलका प्रक्षिप्तः सोऽपि तत्र मितः, ततः अन्योऽपि आमलकस्तत्र क्षिप्तः सोऽपि मितः पुनरन्योऽपि आमलकः प्रक्षिप्तः सोऽपि मितः एवम् अमुना प्रकारेण प्रक्षिप्यमाणेन प्रक्षिप्यमाणेन आमलकेन भविष्यति सोऽपि वास्तविक रूप में पूरा भरा हुआ नहीं होता है। आमूल चूल ठसाठस भरा रहने पर ही-पूरा भरा माना जाता है फिर उस में एक सप भी डाल ने पर नहीं समा सकता है तभी वहाँ उस्कृष्ट संख्यात का स्थान प्रारंभ होता है।
शंको--क्या आमूलचूल नहीं भरे होने पर भी लोक में यह पूरा भरा है ऐसा कहा जाता है ? हां कहां जाता है। क्या इसे आप दृष्टान्त देकर समझा सकते हैं ? हां समझा सकते हैं। तो समझाइये (जहा को दि©तो) इसमें कौन सा दृष्टान्त है ? सुनो-(से जहानामए मंचे सिया) जसे कोई एक मंच (पल्प) हो और (आमलगाणं भरिए) आंवलों से भरा हो (तत्थ एगे आमलए पक्खित्ते सेऽवि माए) उसमें एक आंवला यदि डाला जाता है तो वह भी समा जाता है । ( अण्णे वि આવે છે. કેમ કે તે ખરેખર પૂર્ણ રીતે પૂરિત થયેલ નથી સંપૂર્ણ રીતે ઠાંસી-ઠાંસીને ભરેલું હોય તે જ પૂર્ણ–પૂરિત કહેવાય છે. તે પછી તેમાં એક સર્ષપ નાખવા જેટલી પણ જગ્યા રહેતી નથી. અને ત્યાંથી જ ઉત્કૃષ્ટ सभ्यतनु स्थान प्रार' थाय छे.
શંકા --શું પૂરેપૂરું ભરેલું ન હોય છતાંએ લોકમાં આ સંપૂર્ણ રીતે પૂરિત છે, આમ કહેવામાં આવે છે? હા, કહેવામાં આવે છે. શું તમે मान घटान्त मापीने सभी शछ। १ त मले समव. (जहा को दिटुं तो) आमा हटात यु छ ? ते मना-से जहानामए मंचे सिया) २ ६ मे भय डाय भने त (आमलगाणं भरिए) मामामाथी पूरित
खाय (तत्थ एगे आमलगे पक्खित्ते सेऽवि माए) avi : भाभण ने नापामा भाव ५४ समाविष्ट ४ जय छे. (अण्णे वि पक्खित्ते