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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २३२ परिमाणसंख्यानिरूपणम् प्राभृतमाभृतिकासंख्या वस्तुसंख्येत्यनेकविधा। पर्यवसंख्याधनुयोगद्वारसंरुपान्ता पूर्ववद् बोध्या: । प्राभृतादयः पूर्वान्तर्गताः श्रुताधिकारविशेषाः । सैषा दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या बोध्या । प्रकृतमुपसंहरबाह-सैषा परिमाणसंख्येति । अथ ज्ञानसंख्या निरूपयति-अथ का सा ज्ञानसंख्या ? इति शिष्य प्रश्नः । उत्तरयतिज्ञानसंख्या-ज्ञानरूपा संख्या-ज्ञानसंख्या, सा च यो यज्जानाति तद्रूपा बोध्या। अयं भाव:-यो देवदत्तादिर्यच्छब्दादिकं जानाति, स देवदचादिस्तज्ज्ञानकानुच्यते। अत्र डपाहुडियासंखा, वत्थुसंखा) पर्यवसंख्या, यावत् अनुयोगद्वार संख्या, प्राभृतसंख्या, प्राभृतिकालख्या, प्राभृतप्राभृतिकासंख्या, और वस्तसंख्या। पर्यवस्ख्या से लेकर अनुयोगहार संख्या तक के शब्दों का अर्थ पूर्व के जैसा ही जानना चाहिये । प्राकृत आदि जो हैं, वे पूर्व के अन्र्तगत होते हैं। और ये श्रुत के अधिकार विशेष कहे गये हैं । (सेतं दिट्टिवायसुयपरिमाणसंखा) इस प्रकार से यह दृष्टिवादश्रुत की परिमाण संख्या का स्वरूप है। (से तं परिमाणसंखा) इस प्रकार यह परिमाण संख्या का स्वरूप निरूपण है। (से कि तं जाणणासंखा) हे भदन्त ! ज्ञानसंख्या क्या है ?
उत्तर-(जाणणासंखा-जो जं जाणइ, तं जहा-सह सदियो, गणियं गणियो.निमित्त नेमित्तिमो कालं कालणाणी, वेज वेज्जो, से तं जाणणासंखा) ज्ञानरूपसंख्या का नाम ज्ञान संख्या है। यह ज्ञानसंख्या जो जिसको जानता है उसरूप होती है। इसका तात्पर्य यह है-देवदत्त आदि जिस संखा, वत्थुसंखा) ५ सया, यावत् मनुयोगवार या, प्राकृत भ्या, પ્રાથતિકાસખા,પ્રાભૂત પ્રભૂતિકા સંખ્યા અને વરતુસંખ્યા પર્યાવસંખ્યાથી માંડીને અનુયોગદ્વાર સંખ્યા સુધીના શબ્દને અથે પૂર્વની જેમ જ સમા જઈએ, પ્રાભૂત વગેરે જે છે, તે પૂર્વમાં જ સમાવિષ્ટ થઈ જાય
मेम। श्रुतना अधिक विशेष ४ामा माया छ.. (से तं दिट्रिवायसयपरिमाणसखा) मा शत पातनी परिभा सभ्यानु. ११३५ (सेत परिमाणसखा) मा प्रमाणे या परिणाम सध्यानु ११३५ नि३५ छ. (से कि तं जाणणासंखा १) Asal ज्ञान या शु छ ?
उत्तर--(जाणणास खा जो जे जाणइ, तं जंहा सह सहिओ, गणियं गणिओ, निमित्तं मित्तिओ कालं कालणाणी, वेज्ज वेन्जो से ते जाणणास खा) ज्ञान३५ સંસ્થાનું નામ જ્ઞાનસંખ્યા છે. આ જ્ઞાનસંખ્યા છે જેને જાણે છે, તે રૂપ હોય છે. આનું તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે જે દેવદત્ત વગેરે જે શબ્દ વિગેરે જાણે
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