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अनुयोगद्वारसूत्रे मस्थक दृष्टान्तेन-अय यथानाम कोऽपि पुरुषः परशु गृहीत्वा अटवीसम्मुखं गच्छति तं दृष्ट्व। कोऽपि वदति-कुत्र त्वं गच्छसि ? अविशुद्धो नैंगमो भणतिद्वारा स्पष्ट किया गया है-(तजहा) जैसे (पत्थगदिहतेणं, वसहिदिट्टतेणं पएसदितेणं) प्रस्थक के दृष्टान्त से, वसति के दृष्टान्त से और प्रदेश के हंष्टान्त से । तात्पर्य कहने का यह है कि-'प्रत्येक जीवादिक वस्तु अनन्त धमात्मक है। उन अनंतधों में से अन्यधमो को गौण कर के और विवक्षित धर्म को मुख्य करके वस्तुका प्रतिपादन करनेवाला वक्ता का जो अभिप्राय होता है, उसका नाम नय है, । इस नयरूप प्रमाण का नाम नय प्रमाण है । इसकी प्ररूपणा प्रस्थक दृष्टान्त से वसति दृष्टान्त से और प्रदेश दृष्टान्त से करने में आई है, इसलियेनय को तीन प्रकार का कहा गया है। (से कितपत्थगदिहतेणं) हे भदन्त प्रस्थक दृष्टान्त को लेकर जो नयप्रमाण कि प्ररूपणा की गई है, वह किस प्रकार से है ? . उत्तर--(पत्थगदितेणं) प्रस्थक दृष्टान्त को लेकर जो नयप्रमाण कि प्ररूपणा की गई है वह इस प्रकार से है-(से जहानामए केई पुरिसे परसुंगहाय अडवीसमहुत्तो गच्छेन्ना) जैसे कोई पुरुष परशु (कुठार) लेकर जंगल की ओर जा रहा था (तपासित्ता) उसे उस ओर जाता है. (तजहा) २ (पथदिवेणं, वसहिदिट्टतेणं पएसदिटुंतेणं) प्रस्थान દુકાનથી વસતિના દુખાવાથી અને પ્રદેશના દષ્ટાન્તથી, તાત્પર્ય કહેવાનું આ પ્રમાણે છે કે પ્રત્યેક જીવાદિક વસ્તુ અનંતધમીત્મક છે. તે અનંત ધર્મોમાંથી અન્ય ધમેને ગૌણ કરીને અને વિવક્ષિત ધર્મને મુખ્ય કરીને વધુ પ્રતિપાદક વકતાને જે અભિપ્રાય હોય છે તે નયપ્રમાણ છે. આ નયરૂપ પ્રમાણુનું નામ નયપ્રમાણ છે. આની પ્રરૂપણ પ્રસ્થક દષ્ટાંતથી, વસતિ દૃષ્ટાંતથી અને પ્રદેશ દષ્ટાન્તથી કરવામાં આવી છે, એથી નયના ત્રણ
। पात माया छ.. (से किं तं पत्थगदिटुंतेणं) ३ महत! પ્રસ્થાક દષ્ટોન્સને લઈને જે નાપ્રમાણની પ્રરૂપણા કરવામાં આવી છે, તે કઈ રીતે કરવામાં આવી છે?
उत्तर-(पत्थगदिटुंतेणं) स्यना-पानी हटान्तना आधारे २ नयमानी ५३५। ४२वामा भावी छ, a मा प्रभाव छ. (से जहानामए केईपुरिसे परसुं गहाय अडवी समहुत्तो गच्छेजा) २६ ५५ ५२शु (१२) Re २५ १६ ही sal. (तं पाखिचा) n a तRs or २२ (केई वएना)