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________________ अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २१७ व्यन्तरादीनामौदारिकादिशरीरनि. ४ शरीराणि बद्धमुक्तेति द्विविधानि । तत्र खलु यानि तानि बद्धानि तानि खलु असंख्येयानि । तानि कालतोऽसंख्येयोत्सपिण्यवसर्पिणीसमयराशितुल्यानि । क्षेत्रतः-मतरस्य असंख्येयभागेऽसंख्येयाः श्रेणयः-प्रतरासंख्येभागवीसंख्येयश्रेणिगतपदेशपमाणानि बद्धवैक्रियशरीराणि बोध्यानि । अत्र तासां श्रेणीनां विष्कम्भसूचि ह्यते । इयं विष्कम्भसूचिः कियत्यमाणा गृह्यते ? इत्याह-अङ्गुल. द्वितीयवर्गमूलं तृतीयवर्गमूलेन प्रत्युत्पन्न-गुणितम् । अयं भावः-अङ्गुलप्रमाणे इया वेउव्वियसरीरा पण्णता ?) हे भदन्त ! वैमानिक देवों के वैक्रियशरीर कितने कहे गये है ? (जोशमा) हे गौतम ! (वेउविय सरीरा दुधिहा पण्णता) सामान्य तथा वैक्रिय शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं । (तं जहा) जैसे (बहेल्लया य मुश्केल्लया य) एक बद्ध वैक्रिया शरीर दूसरे मुक्त क्रियशरीर । (तस्थ णं जे ते बद्धेल्लया तेणं असं. खिज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी ओसतिणीहिं अबहीति कोलो, खेत्तओ असंखिज्जा सेढीओ पथरस्स असंखेज्जहभागे) इनमें जो वैमानिक देवों के पद्धवैक्रियशरीर हैं वे सामान्य से असंख्यात हैं। काल की अपेक्षाइनका प्रमाण असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के जितने समय हैं, उतनी संख्याप्रमाण है और क्षेत्र की अपेक्षा प्रतर के असंख्यातवें भाग में वर्तमान असंख्यात श्रेणियों की जितनी प्रदेशराशि होती है उतने हैं। (तासि णं सेढीण विश्ख मसूई अंगुलषीयवग्गमूलं ५३५। विष सम . (वेमाणियाणं भंते ! केवइया वेठब्विय सरीरा पण्णता ?) महत! मानि याना यि शरी। खi प्रशस थयेai छ ? (गोयमा !) गौतम! (वेउब्धियसरीरा दुविहा पण्णता) सामान्य ३५मां वैष्य शरीश २ मारना अपामा माया छ. (तं जहा) भ? (बद्धेल्या य मुक्केल्या य) मे म वैठिय शरी२ अन भी भुत वैठिय शरीर (तत्थ णं जे वे बद्धेल्लया ते गं असंबिज्जा, असंखेनाहिं उस्मपिणी ओसप्पिणीहिं भवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखिज्जा सेढीको पयरस्स असं. खेज्जइभागे) आभा २ मानि वाना मयि शरी। छ त सामाન્યની અપેક્ષા અસંખ્યાત છે. કાળની અપેક્ષા એમનું પ્રમાણ અસંખ્યાત ઉત્સપિણી અને અવસર્પિણી કાળના જેટલા સમય છે, તેટલી સંખ્યા પ્રમાણ છે અને ક્ષેત્રની અપેક્ષા પ્રતરના અસંખ્યાતમાં ભાગમાં વર્તમાન અસંખ્યાત श्रेणियानी २४ी प्रशशि डाय छ. ai छ (तासि गं सेढी गं विक्खं भसूई अंगुलबीइयवग्गमूलं तइयवग्गमूलपडुप्पण) मी मा श्रेणियानी
SR No.040004
Book TitleAnuyogdwar Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages925
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Book_Gujarati, & agam_anuyogdwar
File Size147 MB
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