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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८० प्रतिपक्षनाम निरूपणम्
ब्रह्मदत्ताद्यन्यतराभिधानेन उन्नाम्यते शब्दयते तद् नाम्ना निष्पनं नाम बोध्यम् । एतदुपसंहरति तदेतत् नाम्नेति । अथ किं तत् अत्रयवेन अंबयत्रोऽत्रयत्रिन एकदेशस्तेन यद् नाम निष्पद्यते तत् किं किं विधम् ? इति प्रश्नः । उत्तरयति - अवयवेन निष्पन्नं नामैवं बोध्यम् । तथा हिशृङ्गी-शृङ्गरूपेणावयवेन शृङ्गीति नाम भवति । एवं 'शिखो विषाणी ' इत्यारभ्य 'केशरीककुदी' इत्यन्तानि नामानि ' शिखा विषाण' इत्याद्यवयवनिष्पन्नानि बोध्यानि । तथा - परिकरबन्धेन = विशिष्टरचना युक्तवसन निवसनेन भट= नाम से बना हुआ नाम माना जाता है-तात्पर्य इसका यह है कि 'पिता पितामह' आदि स्वयं एक प्रकार के नाम हैं- व्यवहार चलाने के लिये जो इनका फिर यज्ञदन्त, देवदत्त, ब्रह्मदत्त ऐसा नाम रख लिया जाता वह नाम निष्पन्न नाम है । ( से तं नाणं ) इस प्रकार यह नाम से निष्पन्न नाम है । ( से किं तं अवयवेणं ) हे भदन्त ! अवयव निष्पन्न नाम कैसा होता है ?
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उत्तर- (अवयवेणं-सिंगी सिही, बिसाणी, दाढी, पक्खी, खुरी नही वाली) अवयव निष्पन्न नाम ऐसा होता है-शृङ्गी, शिखी, विषाणी दंष्ट्री पक्षी, खुरी, नखी, वाली (दुपय चउप्पय, बहुपया, नंगुली, केसरी, कउही ) द्विपद, चतुष्पद, बहुपद, लाङ्गली, केशरी, ककुदी तात्पर्य इसका यह है कि अवधव अवयवी का, एकदेश कहलाता है - इस एक देश रूप अवयव से जो नाम पड़ जाता है, वह अवधव निष्पन्न नाम है । शृङ्गरूप अवयव के संबन्ध से श्रृंगी शिखा के संबन्ध से शिखी, कहा जाता है । इसी प्रकार से विषाणी, दंष्ट्री आदि नाम भी जानना એમનું યજ્ઞદત્ત, દેવદત્ત, બ્રહ્મદત્ત, જેવાં નામેા રાખવામાં આવે છે. એ નામા निष्यन्न नामो छे. ( से त नामेणं) આમ આ નામથી નિષ્પન્ન નામ છે. (से किं त अवयवेणं) हे लहन्त ! अवयव निष्पन्न नाम ठेवु होय. छे? उत्तर- (अवयवेणं चिंगी, सिद्दी, विसाणी. दाढी, पक्खी, खुरी नहीं वाली) अवयव निष्यन्न नाम मेवु होय छे, शृंगी, शिमी, विषाली, दृष्ट्री,, पक्षी जुरी, नजी, वासी (दुपयचउप्पय, बहुपया, नंगुली, केसरी, कउही) द्विपह ચતુષ્પ, બહુપદ, લાંગલી, કેશરી, કકુટ્ટી તાત્પ એ છે કે અવયવ-અવયવી ના એકદેશ કહેવાય છે. આ એકદેશ રૂપ અવયવથી જે નામ અસ્તિત્વમાં આવે છે તે અવયવ નિષ્પન્ન નામ છે. શૃંગ રૂપ અવયવના સંબંધથી શૃગી શિખાના સંબધથી શિખી નામેા અસ્તિત્વમાં આવ્યાં છે. આ પ્રમાણે જ विषाणी, दृष्ट्री, वगेरे नाभी विषे पशु लागुवु लेह मे तेभग (परियर
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