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अनुयोगद्वारसूत्र त्रीणि वा, उत्कर्षेण सहस्रपृथत्यम् । मुक्तानि यथा औदारिकस्य तथा भणित. व्यानि । कियन्ति खलु भदन्त ! तैजसशरीराणि प्रज्ञतानि ? गौतम ! जसरीशरीर हैं, वे चतुर्दशपूर्वधारी के सिवाय और किसी दूसरे के नहीं होते हैं। इनका अन्तर-विरहकाल-जघन्य से एक समय का है और उत्कृष्ट से छह मास तक का है। यह बात अन्यत्र कही गई है। इसलिये जो बद्ध आहारक शरीर हैं-वे कभी होते हैं और कभी नहीं होते हैं । (जह अस्थि जहण्णेणं एगो वा दो वा तिणि था) यदि होते हैं तो जघन्य से एक दो या तीन हो सकते है और (उस्कोसेणं सहस्सपुहुत्त) उत्कृष्ट से सहस्रपृथक्त्व तक हो सकते हैं । दो आदि से लेकर नव तक की संख्या का नाम पृथक्त्व है । (मुक्केल्लया जहा ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा) मुक्त जो आहारक शरीर हैं, वे मुक्त औदारिकशरीर के जसा ही जानना चाहिये। परन्तु इनमें इतनी विशेषता है कि जिस जिस प्रकार औदारिक शरीर को अनंत भेदवाला कहा गया है उसी प्रकार इस शरीर को भी भेदवाला कहा गया है-परन्तु अनन्त के अनन्त भेद होते हैं इसलिये यहां पर लघुतर अनन्त लिया गया है, ऐसा जानना चाहिये । अब सुत्रकार तैजस शरीरों का निरूपण करते हैं। (केवड्या णं भंते ! तेयगसरीरा पण्णत्ता) हे भदन्त ! तेजस
ઈને પણ હતાં નથી એમનું અંતર-વિરહાકાળ-જઘન્યથી એક સમયે જેટલું છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી ૬ માસ સુધીનું છેઆ વાત બીજા સ્થાને પણ કહેવામાં मावी. शटा भाटे यारे ाय छ, भने या त नयी. (जइ अस्थि जहणणं एगो वा दो तिग्णि वा) ने डाय छे तो गधन्यथा : २, था
अन (अक्कोसेणं सहस्सपुहुत्त) Geeी सखस पृथप सुधी था छ. माहिया मांडीत न सुधीनी भ्यानु नाम पृथप छे. (मुक्केल्लया अहा ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा) भुरत ने मार शश२ छ त મુકત દારિક શરીરની જેમ જ જાણવું જોઈએ પરંતુ આમાં આટલી વિશેષતા છે કે જેમ ઔદારિક શરીરને અનંતભેદ ચુકત કહેવામાં આવ્યું છે. તેમ આ શરીરને પણ અનંત ભેટવાળું કહેવામાં આવ્યું છે. પરંતુ અનંતના પણ
નન ભેદ હોય છે. એટલા માટે અહીં લઘુતર અનંતનું ગ્રહણ કરવામાં - આવ્યું છે. તેમ સમજવું જોઈએ હવે સૂત્રકાર તૈજસ શરીરનું નિરૂપણ કરે છે
(केवइयाणं भंते ! वेयगसरीरा पण्णत्ता १) DRED! Art ANReal Aiicai .१(गोयमा! तेयगसरीरा दुविहा पण्णत्ता) गीत।