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१३. ५ अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८० प्रतिपक्षनामनिरूपणम् पर्वतशिखरस्थिवजननिवासः, समागतप्रभूतपथिकजननिवासो वा, सभिवेशा= समागतसार्थवाहादिनिवासस्थानम् , एतेगं द्वन्द्वः, तेषु तथोक्तेषु सभिवेश्यमानेषु संनिवासयत्सु सत्सु मङ्गलार्थम् अशिवा शिवा इत्युच्यते शिवेति शृगाली । तयाकोऽपि कदाचित् कारणवशात् 'अग्निः शीतलः, विषं मधुरम्' इति ब्रवीति । तथा-कल्यपालगृहेषु 'अम्लं स्वादुकम्' इत्युच्यते । अम्लशब्दे समुच्चारिते सुरा विनश्यति, अतोऽस्वशब्दे समुच्चारयितव्ये 'स्वादु' शब्दः समुच्चार्यते। इत्थं 'आश्रम' है। पीछे से चाहे वहां पर और भी दूसरे मनुष्यजन आकर भले ही रहने लग गये हों। घान्य की रक्षा के निमित्त किसानों द्वारा जो दुर्गमस्थान निर्मित किया जाता है, वह 'संवाह' कहलाता है। यह स्थान पर्वत की चोटी पर बनाया जाता है। अथवा जिसमें सब तरफ से आकर पथिकजन विश्राम पाते हों वह स्थान 'संवाह' कहा जाता है। जिस स्थान को इधर उधर से आये हुए सार्थवाह
आदि जनों ने अपने निवास के लिये बनाया होता है उसका नाम "सन्निवेश" है। शिवा' नाम शृगाली का है और अशिवा-यह शब्द अमंगलरूप है, परन्तु मंगलार्थक शिव शब्द वाली होने से लोग मंगलनिमित्त अशिवा की जगह शिवा इस शब्द का प्रयोग करते हैं। (अग्गो सीयलो) तथा-कारणवशात् कोई कोई अग्नि पद के स्थान में शीतल शब्द का विसं महुरं) विष के स्थान में मधुर शब्द का प्रयोग भी कर देता है। तथा-(कहालघरेसु अंबिल साउयं) कलालों के घर में " अम्लं स्यादुकम्" अम्ल शब्द की जगह स्वादु शब्दों को રક્ષા માટે ખેડુત વડે જે દુર્ગમ ભૂમિસ્થાન બનાવવામાં આવે છે તે
સંવાહ” કહેવાય છે. આ સ્થાન પર્વતના શિખર પર બનાવવામાં આવે છે. અથવા–જેમાં બધેથી પથિકે આવીને વિશ્રામ મેળવે છે તે સ્થાન સંવાહ” કહેવાય છે. સાર્થવાહ વગેરે આવીને જે સ્થાનને પિતાને રહેવા भाटे साव छ त सन्निवेश' छ. शिवा' शियागनु नाम . भ.
અશિવા” આ શબ્દ અમંગળ રૂપ છે. પણ મંગલાર્થક શિવ શબ્દવાળી હોવાથી લોકો મંગલ નિમિત્ત અશિવાના સ્થાને “શિવા' આ શબ્દને प्रयास ४२ छ. (अग्नी सीयलो) भर रक्शात्रा AGO पहना स्थान शीतल शहना (विसं महुरं) विषना स्थाने मधुर शहने। प्रयोग ४रे छे. तभा (कल्लालघरेसु अंबिलं साउयं) दाना धरोमा “अम्लं । स्वादुकम्" मास शहना स्थान स्वाश होना ०२१६२ ४३ छ. भो। .. अ० ४