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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०७ असुरकुमारादीनामायुःस्थितिनिरूपणम् १३९ गौतम ! जघन्येन पश्चविंशति सागरोपमाणि, उत्कर्षेण षइविंशति सागरोपमाणि । मध्यममध्यमवेयकविमानेषु खल्लु भदन्त ! देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता! · गौतम ! जघन्येन पविशति सागरोपमाणि उत्कर्षेण सप्तविंशति सागरोपमाणि । मध्यमोपरितनप्रैवेयकविमानेषु खलु भदन्त ! देवानां कियन्तं कालं स्थिति प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन सप्तविंशति सागरोपमानि उत्कर्षेण अष्टाविंशति सागगई है ? ( गोयमा ! जहण्णेणं पण्णवीसं सागरोवमा उक्कोसेण
छन्वीस सागरोवलाई) हे गौतम ! वहां पर देवों की स्थिति जघन्य से • २५ सागरोपम की और उस्कृष्ट से २६ सागरोपम की कही गई है। (मज्झिममज्झिमगेवेज्जाविमाणेसु ण भंते ! देवाण केवयं कालं ठिई. पण्णत्ता) मध्यन मध्यम अवेयक विमानों में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? (गोयमा ! जहण्णण छन्चीसं सागरोवमाई. उक्कोसे णं सत्तावीसं सागरोवपाई) है गौतम! वहाँ पर देवों की स्थिति जघन्य से तो २६ सागरोपम की कही गई है और उत्कृष्ट से २७ सागरोपमकी है। (मज्झिमउवरिनगेवेज्जगविमाणेस्तुणं भंते ! देवाण - केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) हे भदन्त ! मध्यमउपरितन प्रैवेयक विमानों में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? (गोयमा। जहण्णेण सत्तावीसं सागरोधमा उक्कोलेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइ) हे गौतम! वहां पर जघन्यस्थिति तो २७ सागरोषम की कही गई है और उत्कृष्ट स्थिति २८ सागरोपम की है। (उवरिमहे हिमगेवेज्जगवि. पण्णवीसं सागरोबमाई, उक्कोसेण छब्बीसं सागरोवमाई') 3 गीतमा त्या દેવોની સ્થિતિ જઘન્યની અપેક્ષાએ ૨૫ સાગરેપમ જેટલી અને ઉત્કૃષ્ટની अपेक्षा २१ सागरेमनी छे. (मज्झिाममज्झिमगेवेज्जगविमाणेस ण भते। देवाण केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) मध्यम मध्यम अवेय विमानामावली स्थिति ear जनी प्रशस ययेशी छे १ (गोयमा। जहण्णेणं छव्वीसं सागरो वमाई उनकोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाई) 3 गीतम! त्यांनी स्थिति જઘન્યની અપેક્ષાએ તે ૨૬ સાગરોપમ જેટલી કહેવામાં આવી છે અને Getी अपेक्षा २७ सागरे।५म रक्षी ४ाम मावी छ. (मझिम उवरिमगेवेज्जगविमाणेसु णं भवे! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता!). ભદંત મધ્યમ ઉપરિતન શૈવેયક વિમાનમાં તેની સ્થિતિ કેટલા કાળની प्रज्ञा प्येबी छ ? (गोयमा.! जहण्गेण सत वीसं सागरोवमाई उक्कोसेणं अट्टा. वीसं सागरोवमाइं) गौतम! त्या अन्य स्थिति तो २७ सागरापभनी मते Seस्थिति २८ सागरामनी मा मावी छे. (उपरिमहे टिमगेवेज्जगविमाणे