________________
अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०७ असुरकुमारादीनामायुःस्थितिनिरूपणम् ३०५ हूर्त | पर्याप्तकबादरपृथिवीकायिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्त्तम् उत्कर्षेण द्वाविंशर्ति वर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूतनानि । एवं शेषकायिकानामपि पृच्छावचनं भणितव्यम् । अष्कायिकानां जघन्येन अन्तर्मुहूर्त्तम्, उत्कर्षेण सप्तवर्ष सह
1
मुहत उक्कोलेण वि अंतो मुहुतं) अपर्याप्तक जो बादर पृथिवीकाधिक जीव है उनकी स्थिति जघन्य से और उत्कृष्ट से दोनों ही प्रकार से अंत की है (पज्जन्त गबादर पुढवीकाइयाणं पुच्छा-गोथमा । जहori कोसेणं बावीस वाससहस्साई अंतो मुहणाई) जो पर्यातक बादर पृथिवीकायिक जीव हैं, उनकी स्थिति के विषय के प्रश्न का उत्तर- हे गौतम । इस प्रकार से है कि इन जीवों की स्थिति जघन्य से अंतर्मुहूर्त्त की है और उत्कृष्ट से अंतर्मुहूर्त कम २२ हजार वर्ष की है । ( एवं सेसकाइयाणं वि पुच्छा वयणं भाणिपव्वं ) इसी प्रकार से अवशिष्टकायिक जीवों के विषय में भी प्रश्न करना चाहिये - तात्पर्य कहने का यह है कि जिस प्रकार पृथिवीकायिक जीवों के विषय में प्रश्न किया गया है उसी प्रकार से हे भदन्त ! अपकायिक आदि जीवों की स्थिति कितने काल की है- १ इस मकार का प्रश्न उद्भावित कर लेना - और जो कुछ आगे अब कहा जा रहा है, उसे उत्तर पक्ष के रूप में लगाते जाना चाहिये - ( आउकाइयाणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्त उदकोसे णं सत्तवासमहस्साइं ) अपकायिक जीवों की स्थिति जघन्य से उक्कोसेण वि अंतोमुद्दत्तं) पर्यास बाहर पृथिवी अयि वे छे तेभनी स्थिति अधन्यथी भने उत्सृष्टथी भन्ने अाश्नी अतर्भुतनी छे. (पज्जतग बादरपुढवीकाइयाण पुच्छा - गोयमा ! जहणेण अंतोमुद्दत्तं उक्कोसेण बावीसं वाहस्साइं अंतोमुहुत्तणाई ) ? पर्यास માદર પૃથિવીકાચિક જીવે છે, તેમની સ્થિતિના સબધમાં જે પ્રશ્ન કરવામાં માન્યા છે તેના જવાબ આ પ્રમાણે છે, કે હે ગૌતમ ! આ જીવની સ્થિતિ જન્યથી અંતર્મુહૂત્તની છે मने उत्सृष्टथी अंतर्भुत भ २२ नर वर्ष भेटसी छे. (एवं सेवकाइयाण वि पुच्छावयण भाणियन्वं) मा प्रभावे भवशिष्टमाथि बना સમધમાં પ્રશ્ન કરવામાં આન્યા છે, તેમજ કે શૠત ! અાયિક વગેરે જીવાની સ્થિતિ કેટલા કાલની છે? આ જાતના પ્રશ્ન ઉદ્ભાવિત કરી લેવા અને જે કંઇ હવે પછી કહેવામાં આવે છે તેને ઉત્તરના રૂપમાં માની લેવું ले थे. (आउकाइयाणं जन्नेण अंतोमुद्दत्तं उक्कोसेण सत्तवाखखहरसाई) અસૂકાયિક જીવાની જવન્યથી સ્થિતિ અંતર્મુહૂત્તની છે અને ઉત્કૃષ્ટથી ૭
अ० ३९