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अनुयोगद्वारसूत्रे परिज्ञानवान् , निपुण:-उपायारम्भकः, तथा-निपुणशिल्पोपगतः-निपुणं-सूक्ष्म यत् शिल्पं तेन उबगतः समन्वागत:-मूक्ष्मशिल्पवानित्यर्थः । एवंविधविशेषणवि. शिष्टम्तुनवायदारक एकां महतीं पटशाटिकां कासशाटिकां वा पट्टशाटिकां= कृमिजतन्तुशाटिकां वा गृहीत्वा 'सयरा ' ति झटिति इस्तमात्रम् हस्तप्रमाणम् अपसारयेव-स्फाटयेत् । तत्रएवं गुरुणोक्त नोदका-शिष्यः प्रज्ञापक-गुरुमेवम् अवादीतू-उक्तवान्-येन कालेन-यावता कालेन तेन तुम्नवायदारकेण तस्याः पटशाटिकाया वा पट्टशाटिकाया वा झटिति हस्तमात्रमपसारितम् , स समयो भवति किम् ? गुरुराह-नायमर्थः समर्थः । कस्मात् ? यस्मात् तन्तूनां समुदयस. हो (मेहावी) मेधावी हो अर्थात् एक बार देखा सुना हुआ कार्य का ज्ञानवाला हो, (निउणे) निपुण हो-चतुर हो, (निउणसिप्पोवगए) सिनेकी कला में निपुण हो। इन विशेषणों से युक्त बना हुआ वह दर्जी का लडका (एगे महापडसाडियं वा पट्टसाडियं वा) एक बहुत घडी भारी स्तूत की शाटिका को अथवा रेशमी शाटिका को (गहाय) लेकर (सयराहं) पडी शीघ्रता से (इस्थमेतं ओसारेजा) एक हाथ प्रमाण फाड देता है। (तत्थ चोयए पण्णवयं एवं वयासी) इस पर प्रश्न काशिष्य गुरू से ऐला पूछता है कि (जेणं कालेणं तेणं तुण्णागदारएणं तीसे पडसाडिपाए वा पट्टसाड़ियाए वा सयराहं हस्थमेत्ते ओसारिए से समए भवइ ?) जितने काल में उस दर्जी के लडकेने उस सूत की शाटिका को अथवा रेशम की शाटिका को एक हाथ प्रमाण फाडा है तो क्या हे भदन्त ! वही समय है ? એટલે કે એક વખત જેલ અને સાંભળેલ કાર્યનું જ્ઞાન ધરાવતા હોય, (निउणे) निषय डाय, यतुर य, (निउणे सिप्पावगए) सीप तामा निपुण डाय, या विषयी समस्त थये तलन पुत्र (एग्गे महइ पडसाडियं वा पट्टसाडियं वा) मे भूमा माटी सारे सतरनी शामिन मया रेशमी शनि (गहाय) सन (सयराह) हम शीताथा (इस्थमेत्ते ओसा. रेज्जा) के साथ प्रमाण ही नामे छ.. (तत्थ चोयए पण्णवयं एवं वयासी) मा विष प्रश्ता शिष्य गुरुने मा प्रभारी प्रश्न ४रे छ है (जेणं कालेणं वेणं तुण्णागदारएणं तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाडियाए वा सयराहं हत्थमेत्ते ओसारिए से समए भवइ ?) २९ a नामे सूतरनी શાટિકાને અથવા રેશમની શાટિકાને એક હાથ પ્રમાણુ ફાડી નાખી છે, તે શું ભાદત! તેજ સમય છે?