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अनुयोगवन्द्रिका टीका सूत्र १९९ घाणमंतरादीनां शरीरावगाहना निरूपणम्२०५ देवानां पृच्छा भणितव्या यावत् अच्युत कल्पम् । सनत्कुमारे कल्पे देवानां भदन्त ! कियन्महती शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता? गौतम ! द्विविधा, अज्ञप्ता, तद्यथा-अवधारणीया च उत्तरक्रिया च, तत्र खलु या सा भवधारणीया सा जघन्येन अंगुलस्थ असंख्येयभागम् उत्कर्षेण षड्नत्नयः, उत्तरक्रिया यथा सौधर्म भवधारणीया। जानना चाहिये । (जहा सोहम्मकणाणं देवाणं पुच्छा-तहा सेस कापदेवाणं पुच्छा भाणियया) सौधर्मकल्प के देवों की पृच्छा की जैसी शेषकल्पों के देवों की' पृच्छा जाननी चाहिये।
प्रश्न:-यह कहां तक ?
उत्तर-(जाव अच्चुगकप्पो) अच्युतकल्प तक (क्षणं कुमारे कप्पे देवाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता?) हे भदन्त ! लन. कुमारकल्प में देवों की शरीरावगाहना कितनी है ? • उत्तर :-(गोयमा ! दुविहा पण्णता) हे गौतम ! दो प्रकार की वहां शरीरावगाहना प्रज्ञप्त हुई है। (तं जहा) वे दो प्रकार ये हैं(भवधारणिज्जाय उत्तरवेउवियो य) एक अवधारणीय दूसरी उत्तरवैकिया (तत्य णं जा सा अवधारणिना सा जहन्नेणं अंगुलस्स असं. खेजहभागं उक्कोसेणं छ रयणीओ) इनमें जो यहां भवधारणीय शरीरावगाहना है वह जघन्य से तो अंगुल के असंख्यातवें भांग प्रमाण है। और उत्कृष्ट से छ रत्निप्रमाण है । (उत्तरवेउविषण न से नये. (जहा सोहम्मकप्पाणं देवाणं पुच्छा त्तहा सेसकप्प देवाणं पुच्छा भाणियव्या) सौधमपना हेवानी छानी म शेषपाना દેવેની પૃચ્છા જાણવી જોઈએ.
H-४यां सुधा ?
उत्तर-(जाव अच्चुयकप्पो) अश्युत८५ सुधी (सणंकुमारे कप्पे देवाणे भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता १) ३ मत! सनभार ४८५i દેવેની શરીરવગાહના કેટલી છે?
उत्तर-गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता ?) गीतमा मे मारनी शरी॥१॥. ना त्या प्रशस येसी छ. (तंजहा) ते मे मारे। 20 प्रभार छ-(भवधारणिज्जा य उत्तरवेउबिया य) मे सारणीय भन . भील उत्तरवैठिय (तत्थ णं जा सा अवधारणिज्जा सा जान्नेणं अंगुलस्व असंखेज्जहभागं नक्को. सेणं छ रयणीओ) स. सभा २ गडी सधारणीय शरीराशा छ, त જ ઘન્યથી તે અંગુલના અસંખ્યાતમા ભાગ પ્રમાણ છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી ૬