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________________ ...: अनुयोगद्वारसूत्रे कोका-'से किं तं' इत्यादि- अथ किं तत् अवमानम् ? अवमीयते-परिच्छियते यत्तदवमानम् वातादिक वस्तु, यद्वा अवमीयते-परिच्छिद्यते-निर्णीयते खातादिमानमनेनेति-अवमान स्वदण्डादिकम् । इति कर्मकरणोभयसाधनपक्षेत्रावमानशब्दः किं साधन इति शिष्यप्रश्नः। अवमानशब्दस्य उभयसाधनत्वमङ्गीकृत्य प्रथम कर्मसाधनतावलम्बने: नोचरयति-अवमान-यत्खल्लु अवमीयते परिच्छिद्यते तत् खातादिकं बोध्यम् । से कि तं ओमाणे १" इत्यादि। . .. शब्दार्थ-(से कि त ओमाणे ?) हे भदन्त ! वह अवमान क्या है ? उत्तर--(जणं ओमिज्जह ओमाणे) जो नापा जाता है वह अव: मान है। (तंज़हा-हत्येण वा दंडेश.वा) नापा जाता है हाथ से, अथवा दण्ड से (धणुक्केण वा) अथवा धनुष से (जुगेण वा) अथवा युग से अंधवा 'नालिंका से, अथवा अक्ष से अथवा मुसल से। यहां पर अवमान शन्द कर्म और करण इन दोनों साधनों में व्यवहत हुआ है। "अवमीयते यत् तत् अवमानम् " जो प्रमाणित किया जावे-नापा जांवें वह अवमान है। इस कर्मसाधन संयन्धी व्युत्पत्ति के अनुसार अवमान शब्द का वाच्यार्थ खातादिक-कूपादिक-वस्तुएँ पड़ती हैं। और जब "अवमीयते अनेनं इति अवमानम्" ऐसी अवमान शब्द की घ्युत्पत्ति करण साधन पक्ष में की जाती है-तब हस्त दण्डादिक अव: मान शब्द के वाच्यार्थ पड़ते हैं ! जय कर्मसाधन पक्ष में अवमान शब्द " से किं त' ओमाणे?" त्याह* : शहाथ-(से, कि ओमाणे १) BRE!. अपमान शुछ १. ...तर--(जण्णं ओमिज्जइ ओमाणे)२ भावामा भाव छ त समान छ. (जहा-हत्येण वा दंडेण वा) लाथ अथवा 43 मापामा भाव. छे. घणक्केण वा) मा धनुषयी (जुगेण वा) अया युगथी अथपा नलिथी,.. થવા અક્ષથી અથવા સાંબેલાથી માપવામાં આવે છે. અહીં અવમાન શબ્દ २ मा मन्ने सपनामा व्यपाहत ये छे. 'अवमीयते यत् तलवमानम् ने प्रमाणित ४२वामा भाव भावामां आवे-ते अपमान छ, नयी युत्पत्ति भुम अपमान १५४ वाफ्याथ-पाCOMNAHai: अने न्यारे 'अवमीयते अनेन इति अवमानम् "i જીતની ધમાન શબ્દની વ્યુત્પત્તિકરણ-સાધના પક્ષમાં કરવામાં આવે છે ત્યાર સ્ત, દડ વગેરે અવમાન શબ્દના વાચ્યાર્થ હોય છે. જ્યારે કર્મ સાધન. 31
SR No.040004
Book TitleAnuyogdwar Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages925
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Book_Gujarati, & agam_anuyogdwar
File Size147 MB
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