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. अनुपगमारा तदर्शनोद्भवो रसोऽपि विस्मयकरो बोध्यः एतादृशो यो रसो भवति स हर्षविषा दोत्पत्तिलक्षणः आश्चर्यमये शुभे वस्तुनि दृष्टे हर्षोत्पत्तिः ,तथैवाशुभे वस्तुनि दृष्टे विषादोत्पत्तिः, एतदुभयचिह्नः अद्भुतो नाम रसो बोध्यः । उदाहरणमाह-असतो रसो यथा-इह-अस्मिन् जीवलोके-संसारे इतोऽन्यत्-अस्मात्परम् भरततरम् आचर्यतरम् किमस्ति ?=न किंचिदप्यस्ति । कुतो न ? इत्याह-यत्-यस्मात् कारणात् जिनवचने त्रिकालयुक्ताः अतीतानागतवर्तमानरूपत्रिकालयुक्ता अपि अर्थाः= जीवादयः सूक्ष्मव्यवहिततिरोहितातीन्द्रिया मूर्तादिस्वरूपा ज्ञायन्ते इति।।मू०१७२॥ भूयपुग्यो) अनुभव में भी आये हुए ऐसे (विम्हयकरो) किसी अद्भुत पदार्थ के देखने पर जो आश्चर्य होता है, उस आश्चर्य का जनक वह पदार्थ विस्मय कर कहलाता है तथा उससे जो रस उत्पन्न होता है, वह रस-भी विस्मयकर कहा जाता है । इस अद्भूत रस का- लक्षण हर्ष और विषाद की उत्पत्ति होना है। आश्चर्य जनक किसी शुभवस्तु के देखने पर हर्षोत्पत्ति होती है, और अशुभवस्तु देखने पर विषादो. त्पत्ति होती है। अतः यह अद्भूत रस इन दोनों चिद वाला होता है, ऐसा जानना चाहिये। अय सूत्रकार इस रस को जानने के लिये उदा. हरण कहते हैं। वे कहते हैं कि (अब्भुओ रसो) 'यह अदभूत रस इमप्रकार से है (जहा) जैसे-(अब्भुयतरमिह एत्तो अन्नं कि अधिजीवलोगंमि) इस-जीवलोक में इससे अधिक और दूसरा आश्चर्यक्या है? (जिगवयणे तिकालजुत्ता अत्था मुणिज्जति) जो जिन वचन में स्थित त्रिकाल-अतीत -अनागत-और वर्तमान कालवर्ती समस्त (अनुभूयपुव्वो) अनुभव (विम्हयकरो) ७ ५५ अभुत ५४.थन न જે આશ્ચર્ય થાય છે, તે આશ્ચર્યને ઉત્પન્ન કરનાર તે પદાર્થ વિસ્મયકારી કહેવાય છે. તેમજ તેના વડે જે રસ ઉત્પન્ન થાય છે, તે રસ પણ વિસ્મય. કર કહેવાય છે આ અદ્ભુત રસનું લક્ષણ હર્ષ અને વિષાદની ઉત્પત્તિ થવી તે છે આશ્ચર્યોત્પાદક કંઈ શુભ વસ્તુને જેવાથી હર્ષ ઉત્પન્ન થાય છે. અને અશુભ વસ્તુને જેવાથી વિષાદની ઉત્પત્તી થાય છે. એથી આ અદૂભુત રસ આ બન્ને ચિહ્નો યુક્ત હોય છે. હવે સૂત્રકાર આ રસને गए। भाटे GIRQ। प्रस्तुत ४२ छे. तया ४ छ है (अन्भुओ रम्रो) भा महमुत २ . प्रमाणे छे-(जहा) म है (अब्भुयतरमिह एत्तो अन्नं किं अस्थि जीवलोगंमि) मा भय सेना Rai पी0 ४ नपा पमा तवी पात छ. ३ (जं जिगरयणे तिकाल जुत्ता अत्था मुणिज्जति) २ જિન વચનમાં સ્થિત ત્રિકાલ-અતીત-અનાગત અને વર્તમાનકાલીન સર્વ