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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र ६ श्रुतज्ञानस्वरूपनिरूपणम् ___ मूलम्-आवस्सयं णं किं अगं अंगाई ? सुयं सुयाइं ? खंधो खंधा ? अज्झयणं अज्झयणाई ? उद्देसो उद्देसा ? । आवस्सयं णं नो अंग, नो अंगाई, सुयं, नो सुयाई, खंधो, नो खंधा, नो अन्झयणं, अज्झयणाई, नो उद्देसो, नो उदेसा ॥ सू० ६ ॥
छाया-आवश्यकं खलु किम् अङ्गम् अङ्गानि ? श्रुतं श्रुतानि ?, स्कन्धः स्कन्धाः ? अध्ययनम् अध्ययनानि ?, उद्देशः उद्देशाः ? । आवश्यकं खलु ना अङ्गं, नो जो विशेषण बतलाया गया है वह यह प्रमाणित करता है कि इस विशेषणवाला मुनि कभी भी मूत्र और अर्थ को विपरीत नही करता है। जो आदेय वचनबाला मुनि होता है-उसके थोडे भी वचन महार्थ से भरे हुए जैसे मालूम होते हैं। आहरण नाम उदाहरण का है। हेतु दो प्रकार का होता है१ एक ज्ञापक हेतु और दूसरा कारक हेतु-घटका-अभिव्यंजक दीप घटका ज्ञापक हेतु है । घटका कर्ता कुंभकार-घटका कारक हेतु है। उपसंहार का नाम उक्न य है। नेगमादि सात नय हैं। सूत्र ५॥
"आवस्सयं णं इत्यादि । ॥सूत्र ६॥
शब्दार्थ--(आवस्सयं णं) आवश्यक सूत्र (किं अंगम्) क्या १ एक अंग रूप है ? (अंगाई) या अनेक अंगरूप है ? (सुयं सुयाई) एक श्रुतरूप है ? या अनेक श्रुतरूप है ? (खंधो खंधाई ?) एक स्कंधरूप है ? या अनेकस्कंध रूप है ? (अज्झयणं अज्ञयणाई) एक अध्ययनरूप है-या अनेक अध्ययनरूप है ? (उद्देसो उद्देसा) एक उद्देशरूप है या अनेक उद्देशरूप है ?એ વાતનું સમર્થન કરે છે કે આ વિશેષણવાળે મુનિ કદી પણ સૂત્ર અને અર્થનું વિપરીત કથન કરતો નથી. જે મુનિ આદેયવચનથી યુક્ત હોય છે, તેમના શેડ વચને પણ મહા અર્થથી ભરેલા લાગે છે. “આહરણ એટલે ઉદાહરણ અથવા દુષ્ટાન્ત હેતુ બે પ્રકાર હોય છે—(૧) જ્ઞાપક હેતુ અને (૨) કારક હેતુ ઘટને અભિવ્યંજક દીપક ઘટના જ્ઞાપક હેતુરૂપ છે. ઘટનું નિર્માણ કરનાર કુંભકાર (કુંભાર) ઘટના કારકહેતુરૂપ છે. ઉપસંહારનું નામ ઉપગમ છે. નૈગમ આદિ સાત નય છે. સૂત્ર ૫ ___ "आवस्सयं णं" त्याह
सार्थ-(आवस्सयं णं अंगम् अंगाई ?) आवश्यसूत्र शु मे अग३५ छ, ४ भने ३५ छ ? (सुयं सुयाई?) शुत मे श्रुत३५ छ, भने श्रुत. ३५ छ ? (खंधो खंधाई ?) शुते मे २४५३५ छ, ॐ भने २४५३५ छ ? (अज्झयणं अज्झयणाई' ?) शुत मे अध्ययन३५ छे, हे मने अध्यय ३५ छ ? (उद्देसो उद्देसा?) शुत मे लहेश३५ छ, भने ५३५ छ ?