________________
भयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १३८ उत्कीर्तनानुपूर्वी निरूपणम् ६०३ मेदेन त्रिविधा प्राप्ता। तत्र-पूर्वानुपूर्वी-ऋषभादि वर्द्धमानान्ता । सर्वपथमोत्पवाद् ऋषभस्य प्रथममुपादानम् । तदनन्तरं क्रमेण अजितादय उक्ताः। पश्चानुपूर्वी तुप्रकार की कही गई है। (तं जहा) उसके वे प्रकार ये हैं-(पुव्वाणुपुत्री, पच्छाणुपुषी, अणाणुपुव्वी) पूर्णनुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी। उत्कीर्तन शब्द का अर्थ नाम का उच्चारण करना ऐसा है । इस उत्कोतन की जो परिपाटी है उसका नाम उत्कीर्तनानुपूर्वी है। (से कि तं पुवाणुपुब्धी) पूर्व प्रक्रान्त पूर्वानुपूर्वी क्या है ?
उत्तर-(उसभे अजिए संभवे अभिणंदणे, सुमई, पउमप्पहे, सुपासे, चंदप्पहे, सुविही, सीयले, सेज्जं से, वासुपुज्जे, विमले, अणते, धम्मे, संनी, कुंथू, अरे, मल्ली, मुणिप्लुम्चए, णमी, अरिट्ठणेमी, पासे, वद्धमाणे, से तं पुत्राणुपुठवी) ऋषभ, अजित, संभव, अभिनंदन, सुमति, पद्माभ, सुपार्य, चंद्रप्रभ, सुविधि, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्थु, अर, मल्ली, मुनिसुव्रत, नमि, अरिष्टनेमि, पार्श्व, और बर्द्धमान । इस प्रकार परिपाटिरूप से नामो. च्चारण करना इसका नाम उत्कीर्तनानुपूर्वी का प्रथम भेद पूर्वानुपूर्वी है। ऋषभनाथ सब से प्रथम उत्पन्न हुए हैं। इसलिये उनका प्रथम नामोच्चारण किया है। तदनन्तर क्रमशः अन्य अजित आदि हुए हैं इसलिये उनका नामोच्चारण हुआ है। पश्चानुपूर्वी में वर्द्धमान को नीय प्रमाणे त्रय ५७१२ ४: छे-(पुव्वाणुपुव्वी, पच्छाणुपुव्वी, अणाणुपुव्वी) (१) पूर्वानु५वी', (२) ५श्च नुपूर्वी अने (3) अनानुपूवी.
" नामनु या५५ ४२" सेट सीन माहीत ननी (नामनु GA२ ४२पानी) परिपाटी (पद्धति) छे, तेनु नाम जीतनानुभूती छे.
48-(से किं तं पुवाणुपुबी') 3 भगवन् ! पूर्वानुषीनु २१३५ छ ?
उत्तर-(उसभे, संभवे, चंदप्पहे. सुविही, सीयले, सेज्जंसे, वासुपुज्जे, विमले, अणंते, धम्मे, संती, कुंथू, अरे, मल्ली, मुणिसुव्वए, णमी, अरिदणेमी, पासे, बद्धमाणे, से तं पुव्वाणुपुत्री) अपन, भति, समप, भनिनन, भुमति, ५५म, सुपाव प्रभ, सुविधि, शीतल, श्रेयांस, पासुल्य, विमा, अनन्त, यम, शान्ति, न्यु, १२, मल्ली, मुनिसुव्रत, नमि, मरि. ટનેમિ, પાર્શ્વ અને વર્ધમાન, આ પ્રકારે પરિપાટી રૂપે નામોચ્ચારણ કરવું તેનું નામ પૂર્વાનુમૂવી છે. તે ઉત્કીર્તનાનુપૂવીના પ્રથમ ભેદ રૂપ છે. અષભનાથ ભગવાન સૌથી પહેલાં થઈ ગયાં હોવાથી તેમના નામનું ઉચ્ચારણ સૌથી પહેલાં કરવામાં આવ્યું છે. ત્યાર બાદ અજિત આદિ તીયકરે ક્રમશઃ થઈ ગયા હોવાથી તેમના નામનું ક્રમશઃ ઉચ્ચારણ કરાયું છે.